गणपति के दाहिने हाथ में शस्त्र :
परिवार के सदस्यों का कहना है कि ईस्वी स. १९०४ शनिवार को गोपालराव ने दोपहर २.३० बजे प्रतिमा की प्रतिष्ठा की थी। अधिकतर गणपति की प्रतिमाएं ऐसी होती हैं, जिनमें दाहिने हाथ से भगवान आशीर्वाद देते दिखाई देते हैं, लेकिन इन २१ मंदिरों की प्रतिमाएं ऐसी हैं, जिनमें भगवान के दाहिने हाथ में शस्त्र है।
मंदिर में दिखती है मराठी, राजस्थानी व गुजराती संस्कृति की झलक
सागवन एवं शीशम की लकड़ी से बने मंदिर में मराठी, गुजराती एवं राजस्थानी संस्कृति का समन्वय देखने को मिलता है। मंदिर में पिछले १०० वर्षों से शहनाई वव चौघडा बजाने वाले गुरव परिवार की पांचवीं पीढ़ी के सदस्य प्रशांत गुरव के अनुसार पहले चारों पहर (सुबह, दोपहर, शाम और मध्यरात्रि) चौघडा बजते थे, लेकिन अब सिर्फ मंगला आरती से आधा घंटे पहले ही शहनाई-चौघडा बजाते हैं।
गणपति की आरती से पहले शुभ वाद्ययंत्र के रूप में प्रसिद्ध १०० वर्ष पुरानी महाराष्ट्रीयन शहनाई से भीमपलासी, मधुवंती व यमन राग की प्रस्तुति करते हैं और गणेशोत्सव के दौरान सुबह ६ बजे व शाम को ७.३० बजे शहनाई, हार्मोनियम बजाते हैं।