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अहमदाबाद

यहां आज भी बजाते हैं शहनाई चौघडा

गणेशोत्सव, १०० वर्षों से है परम्परा

अहमदाबादSep 14, 2018 / 10:52 pm

Gyan Prakash Sharma

Ganesh Festival

यहां आज भी बजाते हैं शहनाई चौघडा

वडोदरा. गणेशोत्सव शुरू होने के साथ ही चारों ओर गणपति की गूंज है। जगह-जगह गणपति की छोटी-बड़ी प्रतिमाएं स्थापित की गई और सुबह-शाम पूजा-अर्चना की जा रही है। कहीं ढोल-नगाड़ों के साथ आरती हो रही है, तो कहीं भक्त डीजे के साथ ताल से ताल मिला रहे हैं, लेकिन वडोदरा का एक ऐसा मंदिर है, जहां आज भी रोजाना शहनाई चौघडा बजाते हैं। आमतौर पर यहां पर रोजाना सुबह शहनाई वादन होता है, लेकिन गणेशोत्सव के दौरान सुबह-शाम को शहनाई-चौघडा बजाते हैं।
शहर के वाड़ी क्षेत्र स्थित धुंडीराज गणपति मंदिर शहर का एकमात्र मंदिर है, जहां आज भी शहनाई एवं चौघडा बजाने की १०० पुरानी परम्परा बनी हुई है। गणपति की आरती उतारने से पहले आधा घंटा शहनाई एवं चौघडा बजाया जाता है। यह वाद्य भगवान शिवजी का प्रिय माना जाता है।
रिद्धि-सिद्धि एवं दो पुत्रों शुभ व लाभ के साथ कुल २१ गणपति के मंदिर बनाने वाले गोपालराव मैराळ पूर्व महाराजा खंडेराव गायकवाड़ के दीवान थे। उन्होंने वडोदरा में चार व उमरगाम एवं महाराष्ट्र में अनेक मंदिर बनवाए थे। तत्कालीन गायकवाड़ सरकार को वित्त की जरुरत थी, तब गोपालराव ने नौ करोड़ रुपए दान दिया था, जिससे उन्हें नवकोट नारायण के रूप में भी जाना जाता था। गोपालराव की सातवीं पीढ़ी आज भी मंदिर की देखरेख कर रही है।

गणपति के दाहिने हाथ में शस्त्र :
परिवार के सदस्यों का कहना है कि ईस्वी स. १९०४ शनिवार को गोपालराव ने दोपहर २.३० बजे प्रतिमा की प्रतिष्ठा की थी। अधिकतर गणपति की प्रतिमाएं ऐसी होती हैं, जिनमें दाहिने हाथ से भगवान आशीर्वाद देते दिखाई देते हैं, लेकिन इन २१ मंदिरों की प्रतिमाएं ऐसी हैं, जिनमें भगवान के दाहिने हाथ में शस्त्र है।

मंदिर में दिखती है मराठी, राजस्थानी व गुजराती संस्कृति की झलक
सागवन एवं शीशम की लकड़ी से बने मंदिर में मराठी, गुजराती एवं राजस्थानी संस्कृति का समन्वय देखने को मिलता है। मंदिर में पिछले १०० वर्षों से शहनाई वव चौघडा बजाने वाले गुरव परिवार की पांचवीं पीढ़ी के सदस्य प्रशांत गुरव के अनुसार पहले चारों पहर (सुबह, दोपहर, शाम और मध्यरात्रि) चौघडा बजते थे, लेकिन अब सिर्फ मंगला आरती से आधा घंटे पहले ही शहनाई-चौघडा बजाते हैं।
गणपति की आरती से पहले शुभ वाद्ययंत्र के रूप में प्रसिद्ध १०० वर्ष पुरानी महाराष्ट्रीयन शहनाई से भीमपलासी, मधुवंती व यमन राग की प्रस्तुति करते हैं और गणेशोत्सव के दौरान सुबह ६ बजे व शाम को ७.३० बजे शहनाई, हार्मोनियम बजाते हैं।

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