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अहमदाबाद

वडोदरा : 100 वर्षों से बना रहे इको फ्रेंडली गणपति

गणेशोत्सव की तैयारियां, तीसरी पीढ़ी ने बनाए रखी है परम्परा

अहमदाबादAug 22, 2019 / 03:42 pm

Gyan Prakash Sharma

वडोदरा : 100 वर्षों से बना रहे इको फ्रेंडली गणपति

वडोदरा : 100 वर्षों से बना रहे इको फ्रेंडली गणपति

वडोदरा. गणेशोत्सव के नजदीक आने के साथ ही प्रतिमा निर्माण की तैयारियां शुरू हो गई हैं। वडोदरा में मराठी ब्राह्मण परिवार के घरों में मिट्टी की गणपति की प्रतिमाएं तैयार हो चुकी हैं। शहर में 10-12 परिवार ऐसे हैं जो पिछले ४० वर्षों से घरों में मिट्टी के गणपति की मूर्तियां तैयार करते हैं। इनमें एक कड़ीकर परिवार भी शामिल हैं, जो पिछले करीब 100 वर्षों से मिट्टी के गणपति बना रहे हैं।
सलाटवाड़ा स्थित मराठी माध्यम के एम. सी. हाईस्कूल में वर्ष १९१२ से गणेशोत्सव मनाया जाता है। स्कूल के पूर्व विद्यार्थी व कारेलीबाग में रहने वाले ७७ वर्षीय प्रभाकर कड़ीकर पिछले ६२ वर्षों से स्कूल में स्वनिर्मित गणपति की प्रतिमा देते हैं जो परम्परा अभी भी जारी है। प्रतिमा के एवज में स्कूल से जो रकम मिलती है उनमें कुछ रुपए जोड़कर वह स्कूल के गरीब विद्यार्थियों के फंड में जमा कराते हैं।
प्रभाकरभाई का कहना है कि गायकवाड़ी प्रेस में काम करते उनके पिताजी ने वर्ष १९२० में गणपति की प्रतिमा बनाने का शुरू किया था। इससे पूर्व उनके दादा पाटण में गणेशजी की प्रतिमा बनाने थे। इस परम्परा को प्रभाकर व उनके पुत्र ने बनाए रखा है। २०२० में इस परिवार में गणपति बनाने की परम्परा को १०० वर्ष पूरे हो जाएंगे।
चार आना में मिलती थी प्रतिमाएं
प्रभाकरभाई का कहना है कि उनके पिताजी के समय में (१९२० ) गणपति की प्रतिमा चार आने में मिलती थी। वर्ष १९६० में कीमत बढ़कर तीन रुपए हो गई और अभ सबसे छोटी प्रतिमा की कीमत ३०० रुपए हो गई है।
रेलवे के सेवानिवृत्त अधिकारी प्रभाकर के पिता भावनगर की चिकनी मिट्टी से साढ़े तीन फीट की ईको फ्रेंडली गणेश प्रतिमा बनाते थे, जो परम्परा आज भी जारी है।
सिर्फ गायकवाड़ के गणपति का होता था सुरसागर में विसर्जन

उनका कहना है कि शहर में १९६० तक विश्वामित्री नदी बारह महीने बहती थी। शहर के लोग विश्वामित्री नदी के घाट अथवा घर में गणपति की प्रतिमा का विसर्जन करते थे। सिर्फ गायकवाड़ के ही गणपति का सुरसागर तालाब में विसर्जन किया जाता था। वर्ष १९६० के बाद विश्वामित्री नदी का पानी कम होने लगा और शहरवासी सुरसागर तालाब में विसर्जन करने लगे।
ग्रंथों के अनुसार ही बनती थी गणपति की प्रतिमा

पिछले ६५ वर्षों से गणपति की प्रतिमा बनाने की परम्परा को बनाए रखने वाले संकेतभाई का कहना है कि पहले ग्रंथों में जिस तरह गणपति का वर्णन है, उसी प्रकार की प्रतिमाएं उनके दादा बनाते थे, लेकिन अब लोगों की मांग के अनुसार गणपित की प्रतिमा ने मॉडर्न रूप धारण कर लिया है। जैसे की अलग-अलग थीम, घोड़ा, चांद, रथ पर बैठे गणपति व बाल गणेश आदि।
खेत की लाल मिट्टी को गलाकर बनाते थे प्रतिमा

दांडिया बाजार में ७० वर्षों से गणपति की प्रतिमा बनाने वाली उमा बेडेकर का कहना है कि आज भावनगर की चिकनी मिट्टी तैयार मिलती है, लेकिन पहले उनकी सास खेत की लाल एवं काली मिट्टी को तीन-चार दिन पानी में गलाने के बाद प्रतिमा तैयार करते थे।

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