मिश्रा ने बताया कि भारत में नवजात बालकों की मौतें अधिक होती हैं, हिमोग्लोबिन की जांच के लिए बालकों का रक्त निकालने में सुई का उपयोग करने से नवजात शिशुओं को परेशानी होती है। इसलिए कोलकाता निवासी 26 वर्षीय एक युवक ने आंख के रेटीना से हिमोब्लोबिन की जांच की तकनीक विकसित की है। इससे मात्र एक ही सैकंड में हिमोग्लोबिन पता लगेगा और संबंधित चिकित्सक व शिशु के अभिभावक को मोबाइल फोन पर मैसेज के जरिये कुछ ही सैकंड में रिपोर्ट भेजना संभव होगा।
असेंट फाइनकेम प्राइवेट लिमिटेड के प्रबंध निदेशक अनिल जैन ने कागजी कार्रवाई के बजाय प्रौद्योगिकी के व्यावसायीकरण पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि फार्मा सेक्टर को रसायनों के उपयोग की जरूरत है लेकिन पर्यावरण संबंधी काफी समस्याएं भी हैं इसलिए उद्योगों व विश्वविद्यालयों को मिलकर काम करने से लाभ संभव है। इंडियन ड्रग मैन्युफेक्चरर्स एसोसिएशन (आईडीएमए) के मानद सचिव डॉ. श्रेणिक शाह ने कहा कि एसएमई में भी व्यवसाय के साथ प्रौद्योगिकी हस्तांतरण पर ध्यान दिया जा रहा है।
पिलानी के वैज्ञानिक डॉ. जे.एल. रहेजा ने दांतों की 2डी व 3डी एंडोस्कॉपी के बारे में जानकारी दी। निरमा यूनिवर्सिटी के फार्मा विभाग के निदेशक व डीन प्रो. मंजुनाथ घाटे ने प्रौद्योगिकी हस्तांतरण प्रक्रिया की जानकारी दी। इनके अलावा भावनगर के डॉ. कन्नन श्रीनिवासन, हैदराबाद की डॉ. डी. शैलजा, जीटीयू गांधीनगर के निदेशक डॉ. राजेश पारिख, एल.डी. इंजीनियरिंग कॉलेज के केमिकल इंजीनियरिंग विभाग के अध्यक्ष प्रो. सचिन पारिख, लखनऊ के वैज्ञानिक नसीम सिद्धिकी ने भी विचार व्यक्त किए।