एक अनुमान के अनुसार वलसाड जिले में करीब सौ करोड़ रुपए का मछली का कारोबार होता है। अनेक छोटी-बड़ी बोट दरिया में से मछली पकड़कर स्थानीय बाजार में बिक्री तथा अन्य देशों में निर्यात होता है। वर्तमान में मछलियों के अपर्याप्त दाम व मौसम में अचानक परिवर्तन समेत कई कारणों से मछुआरों को काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है। अनुमान के अनुसार वलसाड जिले में प्रोमफ्रेट मछली का वार्षिक उत्पादन 45 हजार किलो, बॉबे डक 1.65 करोड़ किलो, हिलसा दो लाख किलो, मुलेट तीन लाख किलो, प्रोन छह लाख किलो और लेवटा का वार्षिक 20 हजार किलो समेत अन्य मछलियों का उत्पादन होता है।
बायोमैट्रिक कार्ड की मांग
नारगोल गांव के शैलेष भाई होड़ीवाला ने बताया कि कोरोना में मछुआरोंं के लिए विकट परिस्थिति है। लॉकडाउन के कारण छह माह मछली पकडऩे का काम पूरी तरह बंद रहने से इस बार मछली ब्रीडिंग ज्यादा होने से अधिक उत्पादन की उमीद थी, लेकिन उत्पादन के सामने मछुआरों व बोट की संख्या अधिक होने और दाम कम मिलने से उम्मीद धूमिल हो गई।
शैलेष भाई के अनुसार सरकार किसानों को उपज का समर्थन मूल्य देकर जिस तरह सहायता करती है उसी प्रकार मछुआरों की सहायता भी करनी चाहिए। इसके अलावा कम दाम में डीजल, 32 फीट से बड़ी बोट से प्रतिबंध दूर करने समेत अन्य सहायता भी देने की मांग की। उन्होंने कहा कि जिस तरह किसान खातेदार खेती के सबूत के बाद ही किसान माना जाता है उसी तरह मछुआरों को भी बायो मैट्रिक कार्ड देकर जन्मजात मछुआरों को ही मछली पकडऩे की अनुमति मिलनी चाहिए, तब जाकर मछुआरों का गुजारा होगा।