युवा ही बदल सकते हैं स्थिति
जर्मनी की संसद में अपनी प्रस्तुति दे चुके सलिल ने कहा कि आज युवाओं के हाथ में स्मार्ट फोन है और उनके पास सेकण्डों में लाखों जानकारियां मिलती है, लेकिन आज की युवा पीढ़ी क्या कर रही है। वे स्पीकमैके के माध्यम से स्कूल-कॉलेजों में कार्यक्रम जाते हैं और वहां पर यह पूछते हैं कि आप लोगों में से कितने लोगों ने यूृट्यूब या सोशल मीडिया पर भारतीय शास्त्रीय संगीत के किसी कार्यक्रम की कोई क्लीपिंग देखी है, तो एक हजार में से एक या दो हाथ दिखते हैं।
इसे युवा ही बदलेंगे। जूता खरीदना है तो विदेशी कंपनियां का चयन करते हैं और जब सभ्यता-संस्कृति का चयन करना है तो भी विदेशी चयन किया जाता है। समाज को क्या हो रहा है। हमारे युवा कहां जा रहे हैं। युवाओं को उनका संदेश है कि इतने सारे संसाधन आ गए हैं लेकिन शास्त्रीय संगीत को लेकर कुछ करते नहीं हैं। खुद का विवेक होना बहुत जरूरी है। समाज में संस्कार जरूरी है।
विदेशों में हो रही है शास्त्रीय संगीत की पूजा
कनाडा के जूनो अवार्ड के लिए नामांकन पा चुके सलिल ने बताया कि विदेशों में भारतीय संगीतज्ञों की ओर से पिछले कई वर्षों से प्रचार-प्रसार किया जा रहा है। जर्मनी, आईसलैण्ड, जापान जैसे करीब 40 देशों में वे खुद प्रस्तुति दे चुके हैं। वहां की जनता टिकट लेकर देखने आते हैं। जापान में शास्त्रीय संगीत की काफी डिमांड है। विदेशों में शास्त्रीय संगीत की खूब कदर है। वे इस संगीत की पूजा कर रहे हैं। देशवासी को सोचना समझना चाहिए कि वे अपनी चीज की कदर करें। दूसरों की जय से पहले, खुद को जय करें। अपनी संस्कृति को पहले जय करें।
राजस्थान सरकार की ओर से कोई प्रयास नहीं
सेना में अधिकारी के लिए चयनित हो चुके इस संगीतज्ञ ने बताया कि वे जिस राज्य राजस्थान से आते हैं वहां शास्त्रीय संगीत को बढ़ाने के कोई प्रयास नहीं किए गए। मध्य प्रदेश , गुजरात, पश्चिम बंगाल में संगीत के लिए बहुत कुछ हो रहा है। गुजरात में निजी तौर पर सप्तक का आयोजन किया जा रहा है। और सरकारों राजस्थान इस मामले में काफी पिछड़ा हुआ है। शास्त्रीय संगीत को लेकर सरकार के प्रयास नहीं के बराबर हो रहे हैं। कहीं कोई नीति नहीं हैं। सरकार की ओर से कोई बड़ा फेस्टिवल नहीं हो रहा है।