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अहमदाबाद

अशोभनीय हरकत करने वाले सदस्यों का निलंबन सदन का अधिकार

राज्य सरकार के संसदीय मामलों के मंत्रियों ने कहा..
-स्पीकर के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव व निलंबन की घटना को समाधान की भूमिका के साथ नहीं जोड़ा जा सकता

अहमदाबादMar 22, 2018 / 10:58 pm

Uday Kumar Patel

Guj Govt, suspension of 3 MLA
गांधीनगर.राज्य के संसदीय मामलों के मंत्री भूपेन्द्र सिंह चुडास्मा व राज्य मंत्री प्रदीप सिंह जाडेजा ने गुरुवार को कहा कि विधानसभा अध्यक्ष के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव व निलंबन की घटना को समाधान की भूमिका के साथ नहीं जोड़ा जा सकता। उन्हंोंने कहा कि सदन के भीतर अशोभनीय व लोकतंत्र को लांछन लगाने जैसा आचरण करने वाले सदस्यों को निलंबित करना सदन का अधिकार है।
मंत्रियों के मुताबिक गत २८ फरवरी को विधानसभा अध्यक्ष के खिलाफ कांग्रेस की ओर से वजूद बिना के कारण अविश्वास प्रस्ताव का आवेदन दिया गया था। गत १४ मार्च को कांग्रेस के सदस्यों की ओर से सदन में शरमजनक व लोकतंत्र को लांछन लगाने वाली घटना घटी थी। इन दोनों घटनाओं को समाधान की भूमिका के साथ नहीं जोड़ा जा सकता। दोनों मंत्रियों ने विपक्ष पर आरोप लगाया कि विपक्ष ने मुख्यमंत्री की अपील की भी अनदेखी की।
राज्य सरकार का मानना है कि इस तरह की घटना फिर से नहीं घटे और कोई भी सदस्य इस प्रकार के आचरण की हिम्मत नहीं करे। इसके लिए राज्य सरकार संसदीय लोकतंत्र की उच्च परंपरा को बनाए रखने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है। इस घटना को राज्य सरकार हल्के में नहीं लेना चाहती।
उन्होंने पहली लोकसभा के सदस्य एस.जी.मुदगल को लोकसभा ने १९५२ में सांसद पद से हटा दिया था। वर्ष २०१० में राजस्थान विधानसभा में भी दो विधायकों को एक वर्ष के लिए निलंबित कर दिया गया था। तब तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने बताया था कि १७,१८, १९ मार्च २०१० को सदन में जो वातावरण बने उससे वे फिर से नहीं दोहराना चाहते। सदन को सुचारू रूप से चलाए जाने की जिम्मेदारी सत्ता के साथ-साथ विपक्ष की भी है।
मध्य प्रदेश के दो विधायकों को सदन में व्यवहार को लेकर सदस्यता से ही हटा दिया गया था। यह तीन वर्ष के निलंबन से भी कड़ी सजा है। इसे उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई थी जिसमें स्पीकर के निर्णय को भी मान्य रखा गया था।
महाराष्ट्र में १९६४ व २००९ में विधायक को चार वर्ष के लिए निलंबित किया गया था। आंध्र प्रदेश में भी विधानसभा ने वर्ष २०१५ में एक सदस्य को एक वर्ष के लिए निलंबित किया था।
गत १४ मार्च को कांंग्रेस विधायकों-प्रताप दूधात, अमरीश डेर व बलदेव ठाकोर ने सदन की कार्यवाही को बाधित कर जिस तरह सदन के भीतर मारामारी की, इसकी गंभीरता को देखते हुए तीनों विधायकों को निलंबित करने का प्रस्ताव पेश किया गया। इसमें कुछ भी गलत नहीं है। यह घटना सदन की अवमानना की तरह गंभीर है। कांग्रेस ने इस घटना को लेकर अपने सदस्यों से सदन से बिना शर्त माफी मांगने की चेष्टा भी नहीं की गई। अवमानना की गंभीर घटना के चलते ही तीनों विधायकों को निलंबित करने का निर्णय सदन ने लिया। यह घटना स्पीकर व सदस्यों की उपस्थिति के बीच घटी, इसलिए इसके लिए कोई विशेष सबूत की भी जरूरत नहीं है।
राज्य सरकार सदन में घटी घटना से पूरी तरह चिंतित है। इस मुद्दे पर राज्य सरकार सदन के भीतर या सदन के बाहर चर्चा करने को पूरी तरह तैयार है। पूरे घटनाक्रम को देखते हुए सदस्यों के इस तरह के आचरण के लिए सदस्यों को विधायक पद से भी हटाए जाने की अधिकतम कार्यवाही हो सकती है। इसके बावजूद विचार-विमर्श के बाद सिर्फ निलंबन का प्रस्ताव ही पेश किया गया।
संसदीय कार्यप्रणाली के तहत सदन के सदस्यों के आचरण के लिए अपने सदस्यों के खिलाफ कार्यवाही करने का अधिकार सदन का है। सदन को अपनी कार्यवाही के नियम बनाने के अधिकार हैं, लेकिन सदन अपने लिए नियम बनाए और उसका अनुसरण करने के संबंध में बाहरी किसी भी सत्ता के लिए सदन जवाबदार नहीं है। सदन अपने विवेकानुसार नियमों से अलग भी कार्रवाई कर सकती है।

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