स्वास्थ्य सेवाओं के गिरते स्तर के मुद्दे पर जनहित याचिका
-राज्य सरकार, स्वाथ्स आयुक्त, केन्द्र सरकार को नोटिस
स्वास्थ्य सेवाओं के गिरते स्तर के मुद्दे पर जनहित याचिका
अहमदाबाद. राज्य में सरकारी अस्पतालों में विशेषकर प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र (पीएचसी), सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र (सीएचसी), जिला अस्पतालों में स्वास्थ्य सेवाओं के गिरते स्तर, अपर्याप्त चिकित्सक, स्टाफ, सुविधाओं के अभाव, भारतीय जन स्वास्थ्य मानक (आईपीएचएस) के अमल नहीं होने के मुद्दे पर गुजरात उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर की गई। प्रभारी मुख्य न्यायाधीश अनंत एस. दवे और न्यायाधीश बीरेन वैष्णव की खंडपीठ ने इस मामले में राज्य सरकार, राज्य के स्वास्थ्य आयुक्त और केन्द्र सरकार को नोटिस जारी किया। मामले की अगली सुनवाई 29 जनवरी को होगी।
डॉ. एम. के. गजेरा की ओर से दायर जनहित याचिका में कहा गया कि केन्द्र सरकार की ओर से पीएचसी, सीएचसी कितनी आबादी पर होनी चाहिए, इसके लिए दिशा-निर्देश तय किए गए हैं। इन जगहों पर चिकित्सक व अन्य स्टाफ वर्ष 2011 की जनगणना के हिसाब से हैं, लेकिन गत सात वर्षों में आबादी में करीब 11-12 फीसदी वृद्धि हुई है और इस कारण को ध्यान में नहीं लिया जा रहा है। वर्तमान स्वास्थ्य सुविधाओं का डाटा अनुचित, गलत और गुमराह करने जैसा है। वर्ष 2007 में भारतीय जन स्वास्थ्य मानक के अनुसार पीएचसी, सीएचसी सहित स्वास्थ्य केन्द्रों को अपग्रेड करने की बात कही गई थी। इसके तहत चिकित्सकों-स्टाफ की संख्या व आधारभूत सुविधाएं तथा अन्य सेवाएं नि:शुल्क उपलब्ध कराने की बात कही गई है।
वकील के. आर. कोष्टी की ओर से दलील दी गई कि इसके बावजूद आईपीएचएस मानक के हिसाब से तय दिशानिर्देश व नियमों के हिसाब से एक भी स्वास्थ्य केन्द्र में सुविधाएं मुहैया नहीं कराई गई। इसलिए एक निश्चित समय सीमा के भीतर राज्य के सभी स्वास्थ्य केन्द्रों में इसका अमल किया जाए। राज्य के कुल 33 जिलों में सिर्फ 22 में ही जिला अस्पताल हैं और 11 जिलों में यह सुविधा नहीं है। इसलिए इन जगहों पर यह सुविधा उपलब्ध कराई जाए। इससे माता और बाल मृत्यु दर में कमी की जा सकती है जिससे ग्रामीण इलाके में लाखों नागरिक स्वास्थ्य सुविधाओं से वंचित नहीं रहें।