बोर्ड परीक्षार्थियों को प्रवेश-पत्र देने से इनकार कर रहे निजी स्कूल
अभिभावक मंडल और बोर्ड के सदस्य ने उठाया मुद्दा, शिक्षामंत्री व बोर्ड अध्यक्ष को पत्र लिखकर की न्याय की मांग
अहमदाबाद. गुजरात निजी स्कूल फीस नियमन कानून-२०१७ के अमल के मुद्दे पर बेशक सुप्रीमकोर्ट की ओर से कई मामलों में स्पष्टता कर दी गई हो, लेकिन निजी स्कूलों की मनमानी रुकने का नाम नहीं ले रही है।
निजी स्कूलों ने फीस विवाद को लेकर उनके यहां से दसवीं और 12वीं कक्षा में अध्ययन करने वाले विद्यार्थियों को स्कूल की बताई फीस नहीं चुकाने पर प्रवेश-पत्र देने से इनकार करना शुरू कर दिया है। अहमदाबाद शहर ही नहीं बल्कि वडोदरा, सूरत और राजकोट के निजी स्कूलों की ओर से भी ऐसा ही रुख अपनाए जाने से निजी स्कूलों के बोर्ड परीक्षार्थियों के परीक्षा देने पर असमंजस की स्थिति बन गई है।
इस पर नाराजगी जताते हुए खुद जीएसईबी के सदस्य डॉ. प्रियवदन कोराट ने बुधवार को जीएसईबी के अध्यक्ष ए.जे.शाह के नाम पत्र लिखकर मांग की है कि वह सुनिश्चित करें कि कोई भी निजी स्कूल का परीक्षार्थी दसवीं और 12वीं की बोर्ड परीक्षा से वंचित नहीं रहे। उन्हें राज्यभर से शिकायतें मिल रही हैं कि निजी स्कूलों ने मार्च-२०१८ में ली जाने वाली दसवीं, 12वीं की बोर्ड परीक्षा में बैठने वाले विद्यार्थियों के प्रवेश पत्र को फीस विवाद के चलते रोकने की घोषणा की है।
बोर्ड की जवाबदारी है कि वह बोर्ड की परीक्षा फीस भरने वाले विद्यार्थियों को परीक्षा में बैठने की व्यवस्था करें। उसके प्रवेश पत्र को जारी करें। यह सुनिश्चित करें कि स्कूल या कोई अन्य उसे रोके नहीं।
उधर ऑल गुजरात अभिभावक मंडल ने भी बुधवार को शिक्षा मंत्री भूपेन्द्र सिंह चुड़ास्मा को पत्र लिखकर इस मामले में दखल देने की मांग की है। उन्होंने पत्र में कहा है कि बोर्ड की ओर से बोर्ड परीक्षा की फीस ली जाती है। उसे भरने वाले विद्यार्थी की परीक्षा लेना बोर्ड की जिम्मेदारी है। जहां तक निजी स्कूलों की फीस का विवाद है तो यह अभी कानूनी विवाद में है। इसके बावजूद भी सरकार की ओर से घोषित किए कट ऑफ के आधार पर दो टर्म की फीस दो विद्यार्थियों ने भर ही दी है। ऐसे में उनका प्रवेश पत्र रोकना उचित नहीं है। यूं देखा जाए तो वर्ष २०१७-१८ की निजी स्कूलों की फीस भी अभी तय करना बाकी है। प्रोवीजनल फीस भी नहीं घोषित हुई है।
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