सप्ताह में अलग प्रकार की सवारी माताजी की पूजा भी हर वार को अलग प्रकार से होती है। रविवार को वाघ पर सवार होती दिखाई देती हैं। सोमवार को नंदी पर, मंगलवार को शेर पर, बुधवार को ऐरावत पर, गुरुवार को गरुड़ पर, शुक्रवार को हंस पर एवं शनिवार को हाथी पर सवारी करते हुए दृश्यमान दिखाई देती हैं।
यूं हुई माताजी अंबाजी में स्थापित पौराणिक कथाओं के अनुसार माताजी का मूल स्थान खेडब्रह्मा था। दांता स्टेट के पूर्व महाराजा माताजी के भक्त थे। एक बार माताजी महाराणा पर प्रसन्न हुई तो उन्हें अपने राज्य में लाने के लिए भावना जागी। इस दौरान माताजी ने पूर्व राजा से कहा कि तुम आगे चलो, मैं पीछे-पीछे चल रही हूं। ऐसा संकेत होने पर राजा आगे चलने लगे। रास्ते में घना जंगल आने पर महाराणा ने पीछे देख लिया कि माताजी कितनी दूर हैं। महाराणा के पीछे देखते ही माताजी उसी स्थल पर स्थिर हो गई। तो महाराणा ने उसी स्थान पर मंदिर का निर्माण करवाया।
३५८ स्वर्ण कलशों से सुशोभित
वर्तमान में अंबाजी मंदिर का जीर्णोद्धार वर्ष १९७५ में शुरू किया गया। करोड़ों के खर्च से समग्र मंदिर की कायाकल्प कर विशाल मंदिर का निर्माण कराया गया। अंबाजी मंदिर में कुल ३५८ स्वर्ण कलश हैं।
भगवान श्रीकृष्ण का मुंडन पौराणिक कथाओं के अनुसार यहां अंबाजी के मूल स्थान गब्बर पर पीपल के पेड़ के नीचे भगवान श्रीकृष्ण के बाल उतारे (मुंडन) गए थे। एक कथा यह भी है कि भगवान श्रीराम के वनवास के दौरान सीता माता की तलाश में पहुंचे श्री राम एवं लक्ष्मण ने माताजी के दर्शन करके आशीर्वाद लिया था।
यहां गिरा था हृदय पौराणिक कथाओं के अनुसार प्रजापति दक्ष ने यज्ञ किया, जिसमें अपने दामाद भगवान महादेव को निमंत्रण नहीं दिया। इसकी जानकारी सती (पार्वती) को होने से उन्होंने यज्ञ में जाने का आग्रह किया और महादेव के विरोध के बावजूद यज्ञ में पहुंची, जहां हुए अपमान से दु:खी सती यज्ञ कुंड में कूद गईं। भगवान शिव को इसकी जानकारी हुई तो उन्होंने सती के देह को यज्ञ कुंड से निकालकर कंधे पर रखा और तांडव करने लगे। भगवान विष्णु ने सृष्टि के विनाश की आशंका के चलते सुदर्शन चक्र छोड़ा, जिससे सती के शरीर के टुकड़े हो गए और जिन स्थलों पर सती के शरीर के टुकड़े एवं अंगों पर धारण आभूषण गिरे उन ५१ स्थानों पर शक्ति पीठ का निर्माण हुआ। गुजरात के अम्बाजी में जहां हृदय गिरा वहां शक्तिपीठ बना, जो जन-जन की आस्था का स्थान बना हुआ है।