सूत्रों के अनुसार पिछली 27 फरवरी 1955 को सोमनाथ ट्रस्ट के ट्रस्टी के.एम. मुन्शी की ओर से पेश किया गयाप्रस्ताव पारित होने के बाद से सोमनाथ महादेव के सानिध्य में पांच दिवसीय ‘सोमनाथ-कार्तिक पूर्णिमा’ के मेले की शुरुआत हुई थी।
इसलिए आयोजित होता है मेला कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरारी पूर्णिमा भी माना जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार शिव ने तीन पुरों वाले दैत्य का नाश किया और देवों ने उस विजय की दिवाली मनाई। उस दिन कार्तिक पूर्णिमा थी इसलिए उसकी याद में सामान्यतया कार्तिक सुद एकादशी से कार्तिक पूर्णिमा तक कार्तिक पूर्णिमा का मेला आयोजित किया जाता है।
मान्यता व श्रद्धा की अनुभूति के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा का चंद्रमा सोमनाथ महादेव के महामेरू प्रासाद के शिखर पर इस प्रकार स्थिर होता है, मानो भगवान शिव ने वास्तव में उसे मस्तक पर धारण किया हो, ऐसी अनुभूति होती है।
भारत-चीन युद्ध के समय भी हुआ था बंद वर्ष 1962 में अक्टूबर में भारत-चीन युद्ध के समय कार्तिक पूर्णिमा का मेला बंद हुआ था। हालांकि पिछले वर्ष तूफान की संभावना के कारण मेला बंद रखा गया था, लेकिन तूफान का खतरा टलने के बाद 8 के बजाए 11 से 15 नवंबर तक मेला आयोजित हुआ था।
शुरुआत में एक दिन का आयोजित हुआ था मेला शुरुआत में एक दिन का मेला लगता था, उसके बाद तीन दिन और पिछले कर्ई वर्षों से पांच दिन का मेला आयोजित हुआ। प्रथम मेला सोमनाथ मंदिर परिसर में, उसके बाद समुद्र किनारे वाघेश्वरी माताजी के मंदिर के समीप और पिछले कई वर्षों से भगवान श्रीकृष्ण के देहोत्सर्ग गोलोकधाम और बाद में कुछ वर्षों से बाइपास स्थित सदभावना मैदान पर आयोजित होने लगा।