घाटे से उबारने की कोई कार्ययोजना नहीं
सरकार हर महीने रतनपुर, रणकपुर, झालावाड़ के दोनों होटल, फतेहपुर, दौसा के महुआ मिड-वे समेत 10 होटलों के महीने का खर्चा उठा रही है। लेकिन कर्मचारी कह रहे हैं कि सरकार की यह दरियादिली कब तक चलेगी। प्रबंधन ने आज तक इन होटलों को बेहतर तरीके से चलाने की कोई कोशिश नहीं की उल्टे आनन फानन में आरटीडीसी की सभी होटलों को लीज पर देने की योजना बना दी। इससे घाटे में चल रही होटलें और भी ज्यादा घाटे में चली गई क्योंकि वहां मेहमानों ने आना ही बंद कर दिया।
जो महीने का खर्च निकाले वही फायदे में आरटीडीसी प्र्रबंधन ने घाटे और फायदे वाले होटलों की सूची तैयार की है। कर्मचारियों का कहना है कि जो होटल महीने का खर्चा, कर्मचारियों को वेतन देने लायक कमाई कर लेते हैं उनको फायदे वाली होटलों की सूची में रखा गया है। ऐसे में आरटीडीसी की वर्तमान में क्रियाशील 30 में से 20 होटलें को ही फायदे में माना है।
लीज पर देने का मामला ठंडे बस्ते में आरटीडीसी की होटलों को लीज पर देने की कवायद को लेकर आरटीडीसी प्रशासन उदयपुर में हुए कड़वे अनुभव के बाद बैकफुट पर है। लेकिन होटलों की दशा सुधारने को लेकर अफसर ज्यादा गंभीर नहीं दिख रहे हैं। ऐसे में होटलों के मौजूदा हालातों को देख मेहमान इन होटलों से दूरी ही बना रहे है। क्योंकि सस्ती दरों पर निजी होटलों में उनके लिए बेहतर कमरे मिल रहे हैं।
ऑनलाइन पूरा पेमेंट करो, होटल मैनेजर देगा छूट आरटीडीसी की सरिस्कार, झूमरबावड़ी, जैसलमेर की मूमल और सम की सेंड ड्यून होटल ऐसी हैं जहां कमरों की बुकिंग ऑनलाइन होती है। अगर कोई सीनियर सिटीजन कमरे की बुकिंग कराता है तो उसे ऑनलाइन पूरा भुगतान करना होगा। उसके लिए श्रेणीवार जितनी छूट किराए में दी गई है उसका रिफंड होटल मैनेजर के द्वारा किया जाता है। इस व्यवस्था से कर्मचारी परेशान हैं।