ब्यावर से सटे मसूदा, जवाजा, खरवा सहित आस-पास के क्षेत्र में बड़ी संख्या में खान हैं। इसके अलावा बड़ी संख्या में मिनरल यूनिट भी लगी हुई हैं। पत्थर पीसने के कारोबार का हब होने के बावजूद श्रमिकों की सुरक्षा के लिहाज से पुख्ता बंदोबस्त नहीं है। इस क्षेत्र में उड़ती धूल आबो-हवा को भी प्रभावित कर रही है। इसके बावजूद इसको लेकर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है।
हालात यह है कि प्रदूषण बोर्ड की ओर से भी ध्यान नहीं दिए जाने के कारण यह समस्या दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। इस समस्या को लेकर कुछ लोगों से बातचीत की तो वे अपनी पीड़ा बताते हुए चिंता में डूब गए।
हर सप्ताह बैठता है बोर्ड
सिलीकोसिस से संदेहास्पद रजिस्ट्रेशन करवाने वाले मरीजों का सप्ताह में दो दिन स्क्रीनिंग कैम्प लगता है। इसमें जिन मरीजों को संदेहास्पद माना जाता है, उन्हें बुधवार को लगने वाले शिविर में बुलाया जाता है। बुधवार को बोर्ड बैठता है। इस बोर्ड में जांच के बाद सिलीकोसिस पॉजीटिव आने पर प्रमाण पत्र जारी करने की कार्रवाई की जाती है।
पहले हर माह लगता था शिविर
सिलीकोसिस मरीजों की जांच के लिए पहले हर माह शिविर लगता था। बाद में इनकी मरीजों की संख्या अधिक आने पर इसको हर सप्ताह कर दिया गया, ताकि मरीजों को समय पर उपचार व सहायता मिल सके।
यह रहती है प्रक्रिया
सिलीकोसिस की जांच के लिए रजिस्ट्रेशन करवाने वालों को शिविर स्थल व समय के बारे में जानकारी दी जाती है, ताकि स्क्रीनिंग शिविर में रजिस्ट्रेशन करवाने वाले पहुंच सके। स्क्रीनिंग के लिए ब्यावर के अलावा मसूदा में भी शिविर का आयोजन किया जाता है।
ढाई हजार का रजिस्ट्रेशन, 275 को प्रमाण पत्र जारी
क्षय निवारण केन्द्र के प्रभारी डॉ. लोकेश गुप्ता ने बताया कि सिलीकोसिस जांच के लिए अब तक कुल ढाई हजार आवेदन आए। इनमें से 275 को सिलीकोसिस पीडि़त का प्रमाण पत्र जारी कर दिया गया, जबकि 700 आवेदन निरस्त हुए है।
एक ही गांव के 72 परिवार प्रभावित ग्राम दौलतपुरा में 72 ऐसे परिवार हैं, जिनके परिवार के सदस्य खानों में काम करते थे। उनकी मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु होने से पहले जांच भी नहीं हो सकी की कि उनको सिलीकोसिस है। ऐसे में इन परिवारों को सहायता भी नहीं मिली। इन 72 परिवार की महिलाओं के कंधों पर परिवार की आजीविका चलाने की जिम्मेदारी आ गई।