खूब तस्वीरें भी खींची जलाशयों पर प्रवासी पक्षियों की गणना के लिए जनवरी को चुना गया है। लेकिन राजस्थान में कई ऐसी झीलें हैं, जहां जनवरी के अलावा दूसरे महीनों में भी प्रवासी पक्षी आते हैं। जैसे विश्व प्रसिद्ध सांभर झील (जयपुर-नागौर) में डीडवाना और नावां की तरफ जुलाई से दिसम्बर के बीच हजारों की तादाद में फ्लेमिंगो देखे गए। पक्षी प्रेमियों ने खूब तस्वीरें भी खींची। अब जनवरी में वहां दर्जनभर फ्लेमिंगो भी नजर आ जाएं तो बहुत हैं।
ऐसे ही ब्यावर (अजमेर) के बीचड़ली तालाब में इन दिनों फ्लेमिंगो देखे जा सकते हैं, लेकिन इससे पहले वहां सालभर में कभी फ्लेमिंगो नजर नहीं आए। इसी तरह जून में गुरलां (भीलवाड़ा) में हजारों की संख्या में फ्लेमिंगो थे, लेकिन अब बहुत कम हैं। कोटा, बारां, बूंदी, उदयपुर, राजसमंद, बांसवाड़ा आदि में इन दिनों खूब प्रवासी पक्षी आए हुए हैं, लेकिन इनका कोई व्यवस्थित रिकॉर्ड (किस वर्ष कितने, कब, कैसे आदि) विभाग के पास नहीं है।
ऐसे में इस गणना के आधार पर भविष्य में होने वाले शोध और इनके संरक्षण के लिए बनने वाली योजनाएं कितनी कारगर होंगी यह कहा नहीं जा सकता।
नॉलेज प्राइवेट पक्षीविदें के पास विभाग के पास संसाधन हैं, लेकिन नॉलेज प्राइवेट पक्षीविदें के पास है। हम उनकी सहायता भी ले रहे हैं। हम प्रयास कर रहे हैं कि पक्षियों की गणना ठीक हो। कुछ वनकर्मियों को प्रशिक्षण भी दिया गया है। उम्मीद है धीरे-धीरे वे विशेषज्ञता हासिल कर लेंगे। 100 से अधिक तालाब-झील आदि पर गणना करा रहे हैं। जनवरी के अंत तक गिनती की जाएगी।
– जी. वी. रेड्डी, चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन (वन विभाग), जयपुर।
यह हैं गणना के तरीके 1. लाइन ट्रांजेक्ट : इसके तहत जलाशय पर 100 मीटर की एक लाइन पर पैदल चला जाता है और लाइन के दोनों ओर नजर आने वाले पक्षियों को गिना जाता है।
2. प्वॉइंट काउंट : इसमें किसी झील-तालाब पर एक जगह विशेष को चुन लिया जाता है। वहां से चारों तरफ अगले एक-दो घंटे के दौरान नजर आने वाले पक्षियों को गिना जाता है।
3. फील्ड ट्रेल : इसमें किसी जलाशय के चहुंओर पैदल घूम-घूम कर पक्षियों को गिना जाता है।
………………………………………… यह हैं गणना की खामियां… 1. वन विभाग के पास सभी जिलों में अत्याधुनिक दूरबीनें नहीं हैं, जिनसे दूर तक देखा जा सकता हो और छोटे पक्षियों को भी चिन्हित किया जाए।
2. बाघ, भालू, शेर, पैंथर जैसे बड़े वन्यजीवों को नाम से (अकबर, सोहन, मोहन, राधा, सुल्तान, कालू आदि) या निशान विशेष (एरो हैडेड, कटेड ईयर्ड, वाउंडेड टेल आदि) से पहचानना थोड़ा आसान होता है, लेकिन पक्षियों में एक ही को दो बार गिनना, इधर-उधर उड़ जाने पर गिन न पाना, झुंड में न गिन सकना जैसी समस्याएं होती हैं।
3. गणना सिर्फ जनवरी के आधार पर नहीं हो सकती। कम से कम अक्टूबर से मार्च तक लगातार होनी चाहिए। ताकि सम्पूर्ण प्रवास काल के दौरान बेहतर ढंग से संख्या पता की जा सके।
4. वनकर्मियों को न केवल बेहतर प्रशिक्षण दिया जाए बल्कि हर जिले में 8-10 ऐसे लोगों की भर्ती भी की जानी चाहिए जो पक्षी विशेषज्ञ हों। पक्षियों को पहचान सकें।
5. किन्हीं स्तरीय पक्षी विशेषज्ञों की टीम तैयार कर उन्हें भी यह काम सौंपा जा सकता है।
6. गणना के दौरान मौसम, समय, अवधि आदि का ध्यान रखा जाना चाहिए। आमतौर पर वनकर्मी गणना सुबह 8-9 बजे बाद करते हैं, जबकि बड़े पक्षी पेलिकंस, पेंटेड स्टॉर्क, फ्लेमिंगो आदि की गणना इससे पहले होनी चाहिए, क्योंकि वे इस दौरान इधर-उधर उड़ते नहीं हैं।
7. वीडियो, ऑडियो रिकॉर्डिंग होनी चाहिए। कुछ पक्षियों को ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, मंगोलिया आदि की तर्ज पर ट्रांसमीटर भी लगाए जाने चाहिएं, ताकि उनका रिकॉर्ड मेन्टेन किया जा सके।
इन दिनों हो रही गणना में यह मुख्य खामी है कि न तो विभाग के पास प्रशिक्षित लोग हैं और न ही संसाधन। ऐसे में गणना केवल खानापूर्ति ही है। इससे बल्कि पक्षी संरक्षण का कार्य भी प्रभावित होगा।
– प्रो. प्रवीण माथुर (अजमेर), प्रो. अनिल त्रिपाठी (भीलवाड़ा), रविन्द्र सिंह तोमर पक्षीविद् (कोटा)।