एशिया, यूरोप और अफ्रीकी महाद्वीप के देशों से लाखों पक्षी शीत प्रवास पर भारत आते हैं। माना जाता है कि दुनिया के करीब 90 फीसद पक्षियों का ठहराव या प्रजनन क्षेत्र भारत है। यहां के जलाशयों और वेटलैंड में अनुकूल मौसम और पर्याप्त भोजन उन्हें यहां लाता है। भारत में पर्यटन को बढ़ाने में प्रवासी पक्षियों का बहुत बड़ा योगदान है। भरतपुर के केवलादेव राष्ट्रीय पक्षी उद्यान में 350 से अधिक पक्षी प्रजातियां हर साल प्रवास पर आती हैं।
प्लास्टिक का अंधाधुंध उपयोग
प्लास्टिक का अंधाधुंध उपयोग पक्षियों के लिए बहुत घातक साबित हो रहा है। पक्षियों के आहार में प्लास्टिक होने से आंतों में फंस कर उन्हें बीमार कर रहा है। यह उनकी अकाल मौत का कारण बन रहा है। शोधकर्ताओं का मानना है कि चमकीला कचरा, बोतल के ढक्कन, प्लास्टिक के कप, सिंथेटिक कपड़ों के टुकड़े, प्लास्टिक फाइबर आदि नालों के जरिए तालाबों जलाशयों, नदियों और समुद्र में पहुंच रहे हैं।
खास तथ्य
30 हजार टन प्लास्टिक कचरा देश में प्रतिदिन उत्पन्न
12 हजार टन प्रतिदिन असंग्रहित
11000 पक्षी प्रजातियां दुनिया में
2000 हजार से अधिक प्रजातियां भारत में
10-12 लाख पक्षियों की प्लास्टिक से दुनिया में हर साल मौत
350 पक्षी प्रजातियों का हर साल केवलादेव प्लास्टिक उद्यान में प्रवास
इनका कहना है
अध्ययन के अनुसार देश में करीब 3 से 4 फीसदी पक्षियों की मौत प्लास्टिक खाने से होती है। पक्षी इसे खाकर पचा नहीं पाते, फिर कई दिन आहार नहीं ले पाते। इससे उनकी मौत हो जाती है। कई बार पक्षियों की प्रजनन क्षमता पर भी विपरीत प्रभाव पड़ता है।
– डॉ. सीपी मीणा, पशु चिकित्सक, वन विभाग, सवाईमाधोपुर।
प्लास्टिक पशु-पक्षियों को खासा नुकसान पहुंचा रहा है। पक्षियों का वजन बढऩे और प्रजनन के बाद उनके अंडों की बाहरी परत कमजोर हो रही है। तापमान सामान्य रखने के लिए जब मादा पक्षी घोंसले पर बैठते हैं तो कमजोर परत टूटने से अण्डे खराब हो जाते हैं।
– डॉ. एम.एम. त्रिगुणायत, जिला समन्वयक राष्ट्रीय पर्यावरण विज्ञान अकादमी (नेसा) एवं सेवानिवृत प्राचार्य आरडी गल्र्स कॉलेज
प्लास्टिक आंतों में फंसकर वजन कम होने से धीरे धीरे पक्षियों की मौत हो जाती है। पर्यावरण को नुकसान होने से इस पर पूर्णत: प्रतिबंध होना चाहिए। घना के बाहर प्रदूषण वाले तालाबों पर पक्षी इसके शिकार हो रहे हैं। कीटनाशक और प्लास्टिक पर रोक नहीं लगाई तो परिणाम खतरनाक होंगे।
– अबरार खां भोलू, पूर्व रेंजर केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान
दरअसल, पारिस्थिकी तंत्र को संतुलित करने में पक्षियों का अहम योगदान है। पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले अनेक कीट, मृत जीव-जन्तुओं के अवशेष, अपशिष्ट, जलीय जीव और वनस्पतियां आदि को खाकर पक्षी जीवन यापन करते हैं। प्लास्टिक का जैविक क्षरण नहीं होने से ये पक्षियों के जीवन के लिए बड़ा संकट बन गया है। वैज्ञानिकों की मानें तो सूर्य की यूवी विकिरण से यह महीन टुकड़ों में टूट कर माइक्रोप्लास्टिक बन जाते हैं। इनमें जहरीले रसायन भी होते हैं। मछलियों और पक्षियों के पेट में पहुंचकर ये पाचनतंत्र को बिगाड़ देते हैं, जिससे उनकी मौत हो जाती है।