राजस्थान विवि में छात्रसंघ अध्यक्ष रहने के दो बार विधायक भिनाय विधानसभा क्षेत्र भी चुनाव लड़ चुके हैं, मगर इसमें वे हार गए। विगत लोकसभा चुनाव में भाजपा के सांवर लाल जाट की जीत के पीछे मोदी लहर एवं जिले में किसान नेता व बीसलपुर पेयजल परियोजना से गांव-गांव को जोडऩे से जाट की जीत हुई। वहीं कांग्रेस से
सचिन पायलट अपने पिछले कार्यकाल के कार्यों को भुनाने में असफल व भीरतघात के चलते हार गए थे
भाजपा की ओर से रामस्वरूप लाम्बा को चुनाव मैदान में उतारकर जातिगत समीकरण को साधने के साथ दिवंगत सांवर लाल जाट के प्रति सहानुभूति की लहर को उपचुनाव में साधनेे का प्रयास किया गया है। मगर इन दोनों को भुनाना भाजपा के लिए किसी चुनौती से कम भी नहीं है। लोकसभा उपचुनाव में भाजपा ने जाट समाज को प्रतिनिधित्व देकर संख्या बल एवं जातिगत समीकरण का कार्ड खेला है। अजमेर लोकसभा क्षेत्र के किशनगढ़, दूदू, मसूदा एवं केकड़ी एवं नसीराबाद विधानसभा क्षेत्र में इन मतदाताओं की अच्छी संख्या को
ध्यान में रखा गया है वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में पूर्व राज्यमंत्री दिवंगत जाट के प्रति सहानुभूति मिलने की उम्मीद लगाई जा रही है। इसके बावजूद भाजपा के लिए जातिगत समीकरण एवं सहानुभूति की लहर चुनौती बनी हुई है।
राजनीति में अनुभव कम मगर लम्बी छलांग रामस्वरूप लाम्बा को राजनीतिक का ज्यादा कोई अनुभव नहीं है। यह भी भाजपा के लिए सबसे बड़ी समस्या है। पंचायती राज चुनाव हों या अन्य कोई किसी में भी उन्हें ज्यादा अनुभव नहीं रहा है मगर अजमेर लोकसभा उपचुनाव में प्रत्याशी घोषणा होने के साथ ही लाम्बा की राजनीति में ऊंची छलांग भी चर्चा का विषय है।
क्या मिल पाएगी पिता की सहानुभूति भाजपा प्रत्याशी रामस्वरूप लाम्बा को उनके पिता की सहानुभूति मिलने की संभावना जताई जा रही है, मगर क्या उन्हें सभी विधानसभा क्षेत्रों में सहानुभूति मिल पाएगी या नहीं यह भविष्य के गर्भ में छिपा है। मसूदा विधानसभा क्षेत्र, नसीराबाद विधानसभा क्षेत्र एवं केकड़ी विधानसभा क्षेत्र में जाट का प्रारंभ से ही प्रभाव रहा है मगर शहरी विधानसभा क्षेत्र में राजनीतिक अनुभव एवं कुशलता भी मतदाताओं की नजर रहेगी।