संभाग मुख्यालय के सबसे बड़े जवाहर लाल नेहरू अस्पताल में सोमवार को बाहर खुले परिसर में पर्ची काउंटर के सामने लगी कतारों के पीछे एक बीमार युवक और उसके पास बैठी महिला नजर आई तो पत्रिका ने उसकी पीड़ा जाननी चाही। बुजुर्ग मां ने हाथ जोड़ कर बेटे को अस्पताल में भर्ती करवाने एवं जांच करवाने का आग्रह किया। इस पर पत्रिका टीम ने प्रयास किए और मौके पर ही कम्पाउंडर नरेश शर्मा को बुलाकर उसके स्वास्थ्य की जांच करवाई। नर्सिंगकर्मी शर्मा ने स्वास्थ्य के बारे में पूछा तो पता चला कि वह मानसिक रोग विभाग में उपचाररत रहा है।
उजड़ गया आशियाना, अस्पताल की शरण बुजुर्ग मां ने बताया कि वे मूल रूप से जोधपुर जिले के रहने वाले हैं। कई सालों से तारागढ़ पहाड़ी की तलहटी एवं पहाडग़ंज के अंतिम छोर पर वह रहती हैं। मकान नहीं है तो एक झोंपड़ी बनाकर रह रहे थे। बेटे की मानसिक हालत ठीक नहीं है। आर्थिक परेशानी के चलते इलाज नहीं करवा पा रही हैं। इसलिए अस्पताल में ही वे पिछले कई दिनों से खुले में ही रहते हैं। यहां खाने-पीने को कोई देता है, उसी से पेट भर लेते हैं।