महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय में शुरुआती दौर में सीमित स्टाफ होने पर यहां कई अधिकारियों ने परीक्षा नियंत्रक पद संभाला। वर्ष 1994-95 के बाद बाद पी.एन. चतुर्वेदी और श्रीगोपाल शर्मा परीक्षा नियंत्रक रहे। शर्मा के कुलसचिव बनने के बाद प्रशासन ने वर्ष 2002-03 में उप कुलसचिव डॉ. जगराम मीणा को कार्यवाहक परीक्षा नियंत्रक बनाया। डॉ. मीणा 15 साल तक यह जिम्मेदारी संभाले रहे। इस दौरान कुछ माह बलवंत सिंह ने भी पदभार संभाला। बीते वर्ष डॉ. मीणा का स्थाई परीक्षा नियंत्रक पद पर चयन हुआ। अब वे 31 मार्च को सेवानिवृत्त हो रहे हैं।
सेवा विस्तार का नहीं प्रावधान यूं तो मीणा 31 मार्च को रिटायर होंगे, लेकिन अंदरूनी स्तर पर उनकी सेवा विस्तार की चर्चाएं भी है। जबकि विश्वविद्यालय सहित सरकारी महकमों में सेवा विस्तार का नियम नहीं है। वित्त विभाग के जानकारों की मानें तो सरकारी सेवा में सेवानिवृत्ति की तिथि तय होती है। तय तिथि पर संबंधित कार्मिक/अधिकारी को रिटायर करना जरूरी है। उसके बाद चाहे तो संबंधित संस्थान संविदा पर उन्हें वापस रख सकता है।
नहीं दे सकते वित्तीय जिम्मेदारी संविदा पर कार्यरत अधिकारी/कर्मचारी को विश्वविद्यालय में वित्तीय जिम्मेदारी नहीं दा जा सकती है। विश्वविद्यालय के नियम 164 में इसका जिक्र भी है। हालांकि राज्य सरकार के सेवा नियम 155 इससे पृथक है। लेकिन विश्वविद्यालय स्वायत्तशासी संस्था है। इसके कई नियम राज्य सरकार से पृथक हैं।
प्रशासन के लिए नहीं आसान…. मीणा की सेवानिवृत्ति के बाद परीक्षा नियंत्रक पद को लेकर प्रशासन की चिंता बढ़ सकती है। यहां अधिकारियों में वरिष्ठता को लेकर शुरू से खींचतान जारी है। किसी भी कनिष्ठतम अधिकारी को परीक्षा नियंत्रक बनाते ही विश्वविद्यालय में विवाद बढ़ सकता है। ऐसा हुआ तो मामला कोर्ट में भी पहुंचने के आसार हैं। कुलपति अथवा कुलसचिव चाहें तो किसी शिक्षक को परीक्षा नियंत्रक पद का दायित्व सौंप सकते हैं।