पंचशीलनगर बी-ब्लॉक निवासी गंज थाने के कांस्टेबल महेशचंद के विशाल नगर स्थित भूखंड पर इन दिनों निर्माण कार्य चल रहा है। निर्माणाधीन मकान के पास रहने वाले रामबाबू शर्मा 8-10 दिन से बीमार थे। शुक्रवार दोपहर तबीयत बिगड़ी तो पत्नी शशि शर्मा और 9 वर्षीय बेटे विशाल ने निर्माण कार्य देखने आए महेशचन्द से मदद मांगी। उसने तत्काल रामबाबू को एम्बुलेंस से जवाहरलाल नेहरू अस्पताल में भर्ती कराया। शनिवार शाम वे ड्यूटी केस बाद रामबाबू की कुशलक्षेम पूछने अस्पताल पहुंचा तो चिकित्सकों ने हालत गंभीर बताई। करीब एक घंटे बाद शाम साढ़े 4 बजे रामबाबू ने दम तोड़ दिया। मृतक की पत्नी शशि शर्मा, बेटा विशाल रोते-बिलखते बेसुध हो गए।
…अपनों ने किया इनकार महेशचन्द ने दोनों को संभालते हुए रामबाबू के पैतृक गांव टोंक-निवाई सूचना दी। मृतक के छोटे भाई ने मौजूदा हालात का हवाला देते हुए आने से इनकार कर दिया। फिर शशि शर्मा के भाई व मृतक के साले को सूचना दी तो उन्होंने भी इनकार कर दिया। महेशचन्द को शशि के पास अन्तिम संस्कार तक के लिए पैसे नहीं होना पता चला तो सन्न रह गया।
विधि-विधान से किया अंतिम संस्कार
परिवार की आर्थिक स्थिति और ढलती सांझ में शव का अंतिम संस्कार जरूरी था। निगम की प्रक्रिया जानी तो इधर-उधर भटकने की बजाय उन्होंने मृतक का अंतिम संस्कार स्वयं के स्तर पर ही करने का निर्णय किया। उसने परिचित नवीन मनसुखानी, ठेकेदार चेतन की मदद से शव शमशान घाट पहुंचाया। यहां अंतिम संस्कार की सामग्री खरीद सभी रीति-रिवाज से अंतिम संस्कार करवाते हुए पड़ोसी धर्म निभाया।
परिवार की आर्थिक स्थिति और ढलती सांझ में शव का अंतिम संस्कार जरूरी था। निगम की प्रक्रिया जानी तो इधर-उधर भटकने की बजाय उन्होंने मृतक का अंतिम संस्कार स्वयं के स्तर पर ही करने का निर्णय किया। उसने परिचित नवीन मनसुखानी, ठेकेदार चेतन की मदद से शव शमशान घाट पहुंचाया। यहां अंतिम संस्कार की सामग्री खरीद सभी रीति-रिवाज से अंतिम संस्कार करवाते हुए पड़ोसी धर्म निभाया।
बिखर गई जिन्दगी
पड़ताल में पता चला कि रामबाबू पंचशील स्थित मॉल के मल्टीप्लेक्स में नौकरी करता थे। कोरोना के बाद सिनेमा हॉल बंद हुए तो रामबाबू की नौकरी चली गई। जैसे-तैसे परिवार का गुजर-बसर चल रहा था लेकिन बीमारी ने परिवार की बची जिन्दगी को बिखेर दिया।
पड़ताल में पता चला कि रामबाबू पंचशील स्थित मॉल के मल्टीप्लेक्स में नौकरी करता थे। कोरोना के बाद सिनेमा हॉल बंद हुए तो रामबाबू की नौकरी चली गई। जैसे-तैसे परिवार का गुजर-बसर चल रहा था लेकिन बीमारी ने परिवार की बची जिन्दगी को बिखेर दिया।