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अजमेर

बेरोजगारों से बेहतर कौन समझ सकता है महत्व, पटरी पर नहीं रोजगार एक्सप्रेस

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अजमेरAug 16, 2018 / 03:42 pm

raktim tiwari

unemployment increase

unemployment increase

नौकरी की कीमत और उसका महत्व बेरोजगारों से बेहतर कौन समझ सकता है। पहले तो सरकार भर्तियां निकालने में ही कंजूसी बरतती है। अगर ऐसा हो भी गया तो राजस्थान लोक सेवा आयोग और अन्य भर्ती संस्थाओं के आवेदन मांगने, सकुशल परीक्षा कराने में बेरोजगारों का कीमती वक्त जाया होता रहता है।
किसी तरह परीक्षा के बाद नतीजा निकल जाए तो खुशकिस्मती है, वरना अदालतों के चक्कर भी कम पीड़ादायक नहीं होते। पिछले कुछ अर्से से तो प्रदेश में नई भर्तियों और नौकरियों का यही हाल दिख रहा है।
नई भर्तियों और नौकरियों का यही हाल

बात चाहे 725 पदों पर आरएएस भर्ती, कॉलेज व्याख्याता की भर्ती की हो या वरिष्ठ व्याख्याता, 7200 द्वितीय श्रेणी शिक्षक की भर्ती से जुड़ी हो, सबमें कहीं ना कहीं पेंच अटका हुआ है। कानूनी जंग नौकरी की ख्वाहिश रखने वाले अभ्यर्थियों और राजस्थान लोक सेवा आयोग का सिरदर्द बन चुकी है।
कभीभर्ती परीक्षाओं के प्रश्नों पर तो कभी पदों में आरक्षण से जुड़े विवाद पिंड नहीं छोड़ रहे हैं। जो बेरोजगार नौजवान साल 2014 और इसके बाद भर्ती परीक्षाओं को पास कर चुके हैं, कायदे से उन्हें नौकरियां मिल जानी चाहिए थी। दुर्भाग्य से उन्हें आमरण अनशन, धरने-प्रदर्शन पर बैठना पड़ रहा है।
राज्य प्रशासनिक और अधीनस्थ सेवाओं में अफसर और स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालयों में पढ़ाने वाले शिक्षकों की जबरदस्त कमी है।

धरने-प्रदर्शन पर…

अपराधियों में भय, आमजन में विश्वास को ध्येय मानने वाली राजस्थान पुलिस भी अफसरों और जवानों की कमी से परेशान है। समय पर भर्तियां और नियुक्तियां नहीं होने से सरकारी संस्थाओं की मुसीबतें लगतार बढ़ रही हैं।
लेटलतीफी ने बेरोजगार युवाओं की जिंदगी को भी मजाक बना दिया है। जिम्मेदार ओहदों पर बैठे अफसर और सरकार का दरवाजा खटखटाने पर उन्हें ‘इंतजार करो का सदाबहार जुमला सुनने को मिलता है।

दो साल पहले आरएएस प्रारंभिक परीक्षा में कामयाब हुए अभ्यर्थियों के साथ तो जबरदस्त मजाक हुआ। जो दस महीने पहले अफसर बन जाने थे, उनकी गाड़ी ही अटकी हुई है। कुछेक ने तो पांच अगस्त को हुई आरएएस प्रारंभिक परीक्षा में दोबारा किस्मत भी अजमाई है। यही दुर्भाग्य अन्य भर्तियों और परीक्षाओं के साथ भी जुड़ा है। पदस्थापना प्रक्रिया तो दूर कईयों के तो परिणाम ही कागजों में अटके हैं। कई बेरोजगार तो नौकरी के इंतजार में उम्रदराज होने की दहलीज पर हैं। इन्हें समय रहते नौकरियां मिलती तो हाल कुछ अलग ही होता।
सरकार और भर्ती संस्थाओं को नियमित भर्तियां करानी हैं तो काम ऐसे नहीं चलेगा। उन्हें भर्ती प्रक्रिया शुरू करने से पहले विभागों से चर्चा कर खामियों को दुरुस्त करना होगा। उच्च स्तरीय विशेषज्ञों की देखरेख में प्रश्न पत्र बनवाने, चाक-चौबंद परीक्षा और बेहद सतर्कता रखते हुए परिणाम निकालने होंगे। तभी प्रदेश की रोजगार एक्सप्रेस को पटरी पर लाया जा सकता है।

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