कमोबेश सभी जाति समुदाय के इस तरह के अनेक विश्वविख्यात धार्मिक स्थल है जहां सभी जाति समुदाय के लोग हाजिरी भरने जाते हैं। यह धार्मिक स्थल एक तरह से पर्यटन स्थल का रुप भी ले चुके हैं। इन जगहों पर कभी भी चले जाइए वहां हजारों श्रद्वालू कतारों मे नजर आ जाते हैं। धार्मिक मान्यताएं जो भी हो लेकिन इन स्थलों पर उस सम्प्रदाय विशेष की संस्कृति, सभ्यता और रीति रिवाजों की जानकारी मिल जाती है।
क्या आप सिंधियों के किसी ऐसे धार्मिक स्थल की जानकारी दे सकते है जहां अन्य जाति समुदाय तो छोडि़ए खुद सिंधी ही वहां की धार्मिक यात्रा करने जाते हों। काफी सोच लिया। दिमागी घोड़ों को देश के कोने कोने में दौड़ा लिया लेकिन सब खाली हाथ वापिस लौट आए।
सिंधु सभ्यता तो काफी प्राचीन है। मोहनजोदड़ो सभ्यता इसे स्थापित भी करता है। सिंध छूटने के बाद सिंधियों ने विभिन्न शहरों में अनेक धर्मशालाओं, मंदिरों और अस्पतालों के निर्माण पर अरबों रुपए खर्च कर दिए लेकिन एक अदद ऐसा स्थान अब भी नहीं बना पाए जो निर्विवाद रुप से या फिर सिंधियों के सर्वोच्च स्थान की पहचान स्थापित करता हो।
यूं तो जम्मू में वैष्णो देवी, शिरडी के साई बाबा मंदिर, दक्षिण भारत में तिरुपति बालाजी, ब्यास स्थित राधास्वामी डेरा, हाजी अली की दरगाह सहित देश में अनेक ऐसे स्थान है जहां पर आपको लंबी कतारों में आसानी से अनेक सिंधी नजर आ जाएंगे।
अपने अजमेर में ही अनेक सिंधी सबसे पहले दरगाह की सीढिय़ों पर दिुकान की चाबी रखकर उसके बाद ही दुकान खोलते हैं। उनको पिकनिक मनाने का मूड हो तो सीधे नारेली चले जाते हैं। पिछले एक कॉलम में मैने इसका जिक्र भी किया था कि सिंधी समाज सर्वधर्म सम्भाव का प्रतीक है।
सिंधियों को दरगाह, चर्च, गुरुद्वारा या किसी भी पंथ में जाने से कोई गुरेज नहीं है। लेकिन दिल पर हाथ रखकर बताइए। इन धार्मिक स्थलों की यात्रा के दौरान आपको कभी महसूस नही हुआ कि हमारा भी ऐसा कोई तीर्थ होना चाहिए जहां विदेशो सहित पूरे देश में रहने वाले सिंधी देखने आए।
अजमेर एक तरह से सिंधियों की राजधानी है। यंू तो पूरे देश के अधिकांश शहरों में सिंधी समाज काफी संख्या में है लेकिन अजमेर की बात ही निराली है।
यहां सिंधियों को तो क्या गैर सिंधियों को भी लगता है कि शायद वे सिंध में रह रहे हैं। मेरा तो मानना है कि अजमेर ही वह उपयुक्त स्थान है जहां सिंधियों का कोई बड़ा स्मारक या फिर विश्वविख्यात धार्मिक स्थल बनना चाहिए। ऐसा नही है कि यहां सिंधी समाज ने अपनी पहचान साबित करने के लिए निर्माण नहीं कराए हैं। शहर की गली गली में झूलेलाल मंदिर है। कहने को तो दाहरसेन स्मारक भी है।
लेकिन झूलेलाल मंदिर तो कमोबेश पूरे देश के बड़े शहरों से लेकर छोटे कस्बों में भी है। बात हो रही है एक भव्य और शानदार धार्मिक स्थल की जो एक तरह से पूरी दुनिया में रहने वाले सिंधियों के सर्वोच्च धार्मिक स्थल के रुप में स्थापित हो जाए। जिसे देखने के लिए पूरे देश दुनिया से सिंधी ही नहीं बल्कि अन्य समुदाय के लोग भी आए।
अजमेर का चेटीचण्ड जुलूस पूरे देश में विख्यात है। सिंधी समाज अपने इस दिन को यादगार बनाने के लिए एक ही दिन में करोड़ो रुपए खर्च कर देते हैं। तो फिर इस तरह का कोई स्थल बनाने में परेशानी क्या है। अजमेर की मिट्टी में पले बड़े अनेक सिंधी विदेशों में नामी व्यवसायी है।
उनहोने अजमेर में ही परमार्थ के तहत अनेक अस्पतालों, स्कूलों और डाइग्नोस्टि केन्द्रों को बनवाने में दिल खोलकर खर्च किया है। पिछले कॉलम में मैनें फिल्म और टीवी के बड़े बड़े सिंधी सितारों और निर्माता निर्देशकों का उल्लेख किया था। दूर मत जाइए जनाब इसी शहर में ही सिंधी समाज के सैकड़ों करोड़पति भी है।