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अजमेर

मानवीय हलचल व प्रदूषण ने रोकी प्रवासी पक्षियों की राह

संख्या 80 प्रतिशत तक घटी – पक्षी विदों का मानना और घट सकती है पक्षियों की संख्या
तापमान में असंतुलन झीलों में बढ़ती मानवीय हलचल व प्रदूषण का असर प्रवासी पक्षियों की आवाजाही पर पड़ रहा है। पिछले दो-तीन सालों से निरंतर पक्षियों की आवक प्रभावित हुई है। इससे जैव विविधता पर भी असर पड़ रहा है। इस बार कई प्रजातियों के पक्षी दिखाई नहीं दिए हैं। इसे लेकर पर्यावरणविद् भी चिंतित है।

अजमेरDec 28, 2023 / 10:31 pm

Dilip

मानवीय हलचल व प्रदूषण ने रोकी प्रवासी पक्षियों की राह

मानवीय हलचल व प्रदूषण ने रोकी प्रवासी पक्षियों की राह

तापमान में असंतुलन झीलों में बढ़ती मानवीय हलचल व प्रदूषण का असर प्रवासी पक्षियों की आवाजाही पर पड़ रहा है। पिछले दो-तीन सालों से निरंतर पक्षियों की आवक प्रभावित हुई है। इससे जैव विविधता पर भी असर पड़ रहा है। इस बार कई प्रजातियों के पक्षी दिखाई नहीं दिए हैं। इसे लेकर पर्यावरणविद् भी चिंतित है। उनका मानना है कि इस बार पिछले कुछ सालों की तुलना में पक्षियों की संख्या में 80 फीसदी गिरावट आई है। कुछेक स्थानों पर जरूर कुछ पक्षियों के झुंड नजर आते हैं इनकी संख्या गत सालों की तुलना में 20 प्रतिशत भी नहीं है। दिसंबर के अंत में भी प्रवासी पक्षियों की चहचहाहट से आनासागर झील खाली है।
तीन साल से निरंतर गिरावटपक्षी विदों का मानना है कि तापमान बहुत कम होने के पक्षी अंडे नहीं दे पाते। ऐसे में प्रजनन काल में यह भारत सरीखे एशिया के उष्ण देशों का रुख करते हैं। इनका झुंड कई कई दिनों तक उड़ान पर सुरक्षित स्थानों पर पहुंचता है। इनका आना जाना करीब 20-25 सालों से निरंतर हो रहा है। वर्ष 2017 – 18 तक अजमेर में विभिन्न प्रजातियों के पक्षी नजर आते थे। इनका मुख्य केन्द्र आनासागर झील, फॉयसागर, ब्यावर के बिचड़ली, किशनगढ़ के गुंदोलाव, सांभर, केकड़ी सहित सावर आदि क्षेत्र में आते थे लेकिन पिछले तीन सालों में इनकी संख्या में 80 प्रतिशत तक गिरावट आई।
बढ़ता मानवीय हस्तक्षेपआनासागर में संचालित नौकायान, स्पीड बोट हर थोड़ी देर में प्रवासी पक्षियों की गतिविधियो में गतिरोध उत्पन करती रहती है। चारों ओर पाथवे बनने से अब लगातार मानवीय हस्तक्षेप,आवारा पशुओं के कारण, पक्षियों के आराम करने के लिए स्थान नहीं।
कचरा तथा जलकुम्भी – झील के चारों ओर व्यावसायिक गतिविधियां, होटल, रेस्टोरेन्ट, वेडिंग जोन का कचरा सीधा आनासागर में डाल देते है तथा आनासागर में जलकुम्भी का जाल।

इन पक्षियों का आना बंदपक्षीविदों की मानें तो पिछले पांच वर्षों में छोटी सिल्ही, सिलेटी सवन, सरपट्टी सवन, सुर्खाब, गिरी बत्तख, सीखपर बत्तख, चेत्ता बत्तख, लाल सिर बत्तख, कुर्चिया बत्तख, अबलक बत्तख, शिवा डुबबुबी, हाजी लगलग, भूरी क्रेक, पिहो, जलपीपी इत्यादि प्रजाति के प्रवासी पक्षियों ने आनासागर आना पूरी तरह से बंद कर दिया है।
मात्र 10 से 25 प्रतिशत आवक

नकटा, बेखुर बत्तख, पियासन बत्तख, नील सिर बत्तख, तिदारी बत्तख, छोटी मुगार्बी, छोटी लाल सिर बत्तख, चमचा, सफेद हवासील, डॉलमेशयन हवासील, बान बानवै, राज चहा, बड़ा गुदेरा, जीरा बाटन, कॉलरवाला बाटन, बड़ा सूरमा- चौबाहा, बडा टिमटिमा – चौबाहा, छोटी धौबैचा, गलचंचु कुररी, जल कुररी, मुच्छल कुररी, सफेद पूछ टिटहरी, नील-कण्ठी लूसीनिया, सफेद भौह खंजन, सिलेटी खंजन, सफेद खंजन,पीला खंजन इत्यादि प्रजातियों की संख्या में मे 70 से 90 प्रतिशत तक की गिरावट दर्ज की गई हैं।गिरावट के कारण
प्राकृतिक संसाधनों का दोहन, मछली पालन प्रमुख वजह है।इनका कहना है

मानवीय हस्तक्षेप व झील के किनारे आवागमन के चलते पक्षी को शांत वातावरण नहीं मिल पाता। झील में मत्स्य पालन व नौकायान के चलते पक्षियों को आराम करने या प्रजनन आदि का माहौल नहीं मिल पाता। करीब 20 सालों से इनकी आवाजाही अजमेर में पर्यटन की दृष्टिगत आकर्षण का केन्द्र थी इनकी संख्या हजारों में होती थी जो अब घटकर 20 प्रतिशत तक रह गई है।
डॉ विवेक शर्मा, गेस्ट फैकल्टी, मदस विश्वविद्यालय, अजमेर।

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