इन निरर्थक प्रवृत्तियों को छोडकऱ ही परस्पर क्षमा याचना करनी चाहिए। आत्मा की शांति एवं उज्जवलता के लिए कषायों का उपशमन करना जरूरी है। क्रोध-मान, माया, लोभ अग्नि के समान है। पर्युषण पर्व शान्ति का पर्व है। यह शीतलता और समानता का परिचायक है।
साध्वी निरंजना ने कहा कि मन में किसी के प्रति गांठ रखकर क्षमायाचना करना सार्थक नहीं है। लकड़ी में अगर गांठ हो तो उसका फर्नीचर नहीं बनता। शरीर में गंाठ हो तो हम तुरंत उसका निदान करवाते हैं। उसी तरह चौरासी लाख योनी से क्षमा याचना होती है।
पंडित जवाहरलाल नेहरू ने भी कहा था कि क्षमा के बिना जीवन रेगिस्तान है। जो पत्थर, छैनी, हथोड़े की मार सह लेता है वही मूर्ति का रूप लेता है। इससे पहले कल्पसूत्र वाचन और गाजे-बाजे से चैत्र परिपाटी निकाली गयी। स्नात्र पूजन सहित तपस्वी महिला-पुरूषों ने अराधना कर मोदक चढ़ाए। संवत्सरी प्रतिक्रमण भी हुआ। के साथ पर्युषण पर्व सम्पन्न हुए।
प्रचारक आर.के.जैन ने बताया की सुबह स्नात्र पूजा हुई। तपस्वी महिला-पुरूषों ने अराधना कर मोदक चढ़ाए। कविता जयदीप पारख ने आठ उपवास, विकास बुरड़, धर्मांशु बुरड़ नेतीन उपवास तेले की तपस्या की। अंगरचना धर्मेन्द्र जैन और रंगोली ज्योति श्रीमाल ने बनाई।
इनका 25 सितम्बर को सम्मान होगा। इस दिन सामूहिक क्षमायाचना एवं स्वधर्मिवात्सलय दिवस कार्यक्रम होगा। अध्यक्ष विक्रमसिंह पारख, ने बताया कि कल्पसूत्र वाचन के बाद बैंड बाजों के साथ चैत्र परिपाटी निकाली गयी। तथा संाय संवत्सरी प्रतिक्रमण के साथ पर्युषण पर्व सम्पन्न हुए।
काश बचाते अनमोल पानी, नहीं होती कोई चिंता कम बारिश सेइस बार बीसलपुर बांध में पर्याप्त नहीं आया है। दो-तीन की कटौती के बाद लोगों को पीने का पानी नसीब हो रहा है। इसके बावजूद धरती पर बरसने वाले अनमोल ‘ नीर ’ की महत्ता लोगों को समझ नहीं आई है। हजारों लीटर पानी सडक़ों-नालियों में बेकार बह जाता है। लेकिन 70 फीसदी से ज्यादा घरों और सरकारी दफ्तरों में बरसाती पानी को बचाने के इंतजाम नहीं है।