कालीरमन ने कहा कि आमतौर पर जूडो-कराटे को ही आत्मरक्षा का पर्याय समझा जाता रहा है। वैसे जूडा़े-कराटे भारतीय कला नही है। अब वे कुश्ती के माध्यम से आत्मरक्षा प्रशिक्षण की शुरुआत करना चाहते हैं। कुश्ती स्वास्थ्य का आधार है। वे युवक-युवतियों को कुश्ती के माध्यम से आत्मरक्षा के गुर भी सिखाएंगे।
बन सकते हैं दारासिंह दारासिंह को कुश्ती को पर्याय और मिसाल बनने के सवाल पर उन्होंने कहा कि दारासिंह वास्तव में कुश्ती के रोल मॉडल थे। उनकी शुरुआती फिल्में भी कुश्ती पर आधारित थी। जिस तरह हॉकी का मतलब ध्यानचंद होते थे, वैसे ही दारासिंह कुश्ती के सिरमौर थे। लेकिन युवा चाहें तो आज भी दारासिंह बन सकते हैं। केवल कठिन परिश्रम, लगन, अखाड़े में ईमानदारी से समय बिताने की जरूरत है।
युवाओं के व्हाट्सएप, फेसबुक, ट्विटर में समय बिताने के सवाल पर कालीरमन ने कहा कि नौजवान सेहत के प्रति जानते-पढ़ते बहुत हैं, लेकिन वे इसके लिए फिक्रमंद नहीं हंै। स्वस्थ रहने के लिए सेहत पर ध्यान देना अनिवार्य है। सेहत के बारे में लिखने-पढऩे, खुद ही खान-पान निर्धारण करने से ही काम नहीं चलता। सुबह का सैर-सपाटा, हल्का व्यायाम, दौडऩा, योग और कुश्ती जैसे दंगल बहुत लाभदायक होते हैं।
…वो डूब गए थे रोल में दंगल और सुल्तान में आमिर खान और सलमान खान एवं अभिनेत्रियों के किरदार से जुड़े सवाल पर उन्होंने कहा कि वास्तव में बॉलीवुड की नायक-नायिकाओं ने बहुत मेहनत की। प्रशिक्षण के दौरान वे किरदार में डूब गए थे। दोनों फिल्मों ने नायक-नायिकाओं ने कोई डुप्लीकेट का सहारा भी नहीं लिया। यह काम के प्रति उनका समर्पण दर्शाता है।