ऋषि दयानंद के 135 वें निर्वाण दिवस पर आयोजित महर्षि दयानंद सरस्वती का स्वराज चिंतन विषयक संगोष्ठी में बोलते हुए प्रो. शास्त्री ने कहा कि ऋषि दयानंद वेदों को वैज्ञानिक आधार मानते थे। उन्होंने वेदों के अध्ययन से ही स्वराज शब्द को उजागर किया। स्वराज ऋषि दयानंद का ऐतिहासिक और अमर चिंतन था।
उनसे पहले देश में कई विद्वान, लेखक और शासक हुए पर स्वराज की प्रथम परिकल्पना दयानंद सरस्वती ने की थी। उनके बाद 19 वीं सदी में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक, महात्मा गांधी और अन्य सेनानियों ने इसे बुलंद किया। वास्तव में ऋषि दयानंद पर चिंतन-मनन की कई धाराएं हैं। जिन पर कई वर्षों तक विचार-विमर्श, व्याख्यान, संगोष्ठी हो सकती है।
मुम्बई के डॉ. सोमदेव शास्त्री ने कहा कि ऋषि दयानंद में बाल्यावस्था से ही जिज्ञासु और ज्ञान प्राप्ति की अभिलाषा थी। स्वामी विरजानंद जैसे गुरू का सानिध्य पाकर वे मूलशंकर से दयानंद बन पाए। अपने निर्वाण तक स्वामी दयानंद ने देश में फैले आडम्बरों, अनर्गल रीति-रिवाजों के खिलाफ आवाज उठाई। उनका वेदों की और लौटने का संदेश वर्तमान युग में भी प्रासंगिक है।
इससे पहले दयानंद शोध पीठ के निदेशक प्रो. प्रवीण माथुर ने स्वागत किया। इस दौरान प्रो. आशीष भटनागर, प्रो. शिवदयाल सिंह, प्रो. सुभाष चंद्र, प्रो. अरविंद पारीक, प्रो. भारती जैन सहित कई आर्य विद्वान, ऋषि उद्यान के आचार्य, विद्यार्थी उपस्थित थे। संचालन प्रो. ऋतु माथुर ने किया।