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अजमेर

ये हैं राजस्थानी भाषा की मान्यता में रोड़े, नहीं कर पाए ये खास काम

कई कुलपति बदल गए, लेकिन राजस्थानी भाषा और साहित्य को प्रोत्साहन देने से जुड़ा अहम केंद्र तैयार नहीं हो पाया।

अजमेरDec 08, 2017 / 08:12 am

raktim tiwari

school of rajastnan studies

school of rajastnan studies

रक्तिम तिवारी/अजमेर।

राजस्थानी साहित्य-भाषा और कला एवं संस्कृति को बढ़ावा देने में महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय की रुचि नहीं है। विश्वविद्यालय स्कूल ऑफ राजस्थान स्टडीज के प्रस्ताव को चार साल में भुला चुका है। इस दौरान कई कुलपति बदल गए, लेकिन राजस्थानी भाषा और साहित्य को प्रोत्साहन देने से जुड़ा अहम केंद्र तैयार नहीं हो पाया।
विश्वविद्यालय ने वर्ष 2012-13 में प्रबंध मंडल की बैठक में स्कूल ऑफ राजस्थान स्टडीज बनाने का प्रस्ताव रखा। तत्कालीन कुलपति प्रो. रूपसिंह बारेठ ने इसके लिए 1 करोड़ रुपए बजट निर्धारण और यूजीसी को प्रारूप भेजना निर्धारित किया। प्रो. बारेठ के सितम्बर 2013 में इस्तीफा देकर जाने के साथ ही विश्वविद्यालय ने अहम प्रस्ताव को भुला दिया।
यह होना था स्कूल में
प्रस्तावित स्कूल ऑफ राजस्थान स्टडीज में कई अहम योजनाएं और कार्यक्रम शुरू किए जाने थे। इनमें राजस्थानी भाषा और बोलियों का संरक्षण, राजस्थानी साहित्य, कथा, कहानियों पर शोध, संगोष्ठी, कार्यशाला का आयोजन किया जाना था। इससे ना केवल राजस्थानी भाषा को बढ़ावा मिलता, बल्कि संवैधानिक मान्यता को लेकर भी प्रयास किए जाने थे। स्कूल ऑफ राजस्थान स्टडीज के लिए केंद्र सरकार और यूजीसी से भी सहयोग लेना निर्धारित किया गया था।
चार साल में नहीं ली सुध

प्रो. बारेठ के बाद चार साल में विश्वविद्यालय ने राजस्थानी भाषा और साहित्य में अहम योगदान साबित होने वाली स्टडीज स्कूल की सुध नहीं ली। इस दौरान प्रो. के. के. शर्मा, आर. के. मीणा, प्रो. कैलाश सोडाणी कुलपति रहे, लेकिन किसी ने स्कूल ऑफ राजस्थान स्टडीज को अमलीजामा नहीं पहनाया। यूजीसी को प्रस्ताव भेजने, मंजूरी दिलाने के प्रयास भी नहीं किए गए।
अन्य शोध पीठ-चेयर पर ध्यान
विश्वविद्यालय ने चार साल में स्कूल ऑफ राजस्थान स्टडीज की बजाय दूसरी शोध-पीठ चेयर पर ज्यादा ध्यान दिया। इनमें अम्बेडकर शोध पीठ, सिंधु शोध पीठ, प्रस्तावित महर्षि दयानंद सरस्वती शोध पीठ-चेयर शामिल हैं। इन शोध पीठ-चेयर के लिए विश्वविद्यालय ने अपनी तरफ से 1-1 करोड़ रुपए बजट भी दिया है। स्कूल ऑफ राजस्थान स्टडीज की तरफ प्रशासन ने झांकना भी मुनासिब नहीं समझा है।
यह होता फायदा

– राजस्थानी भाषा और साहित्य में वृहद शोध
– देशी बोलियों और भाषाओं का संरक्षण

– राजस्थान की विविध संस्कृतियों को बढ़ावा
– अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर मिलती विश्वविद्यालय को पहचान

– राजस्थानी भाषा को संवैधानिक मान्यता मिलने में आसानी

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