प्रस्तावित स्कूल ऑफ राजस्थान स्टडीज में कई अहम योजनाएं और कार्यक्रम शुरू किए जाने थे। इनमें राजस्थानी भाषा और बोलियों का संरक्षण, राजस्थानी साहित्य, कथा, कहानियों पर शोध, संगोष्ठी, कार्यशाला का आयोजन किया जाना था। इससे ना केवल राजस्थानी भाषा को बढ़ावा मिलता, बल्कि संवैधानिक मान्यता को लेकर भी प्रयास किए जाने थे। स्कूल ऑफ राजस्थान स्टडीज के लिए केंद्र सरकार और यूजीसी से भी सहयोग लेना निर्धारित किया गया था।
विश्वविद्यालय ने चार साल में स्कूल ऑफ राजस्थान स्टडीज की बजाय दूसरी शोध-पीठ चेयर पर ज्यादा ध्यान दिया। इनमें अम्बेडकर शोध पीठ, सिंधु शोध पीठ, प्रस्तावित महर्षि दयानंद सरस्वती शोध पीठ-चेयर शामिल हैं। इन शोध पीठ-चेयर के लिए विश्वविद्यालय ने अपनी तरफ से 1-1 करोड़ रुपए बजट भी दिया है। स्कूल ऑफ राजस्थान स्टडीज की तरफ प्रशासन ने झांकना भी मुनासिब नहीं समझा है।
– देशी बोलियों और भाषाओं का संरक्षण – राजस्थान की विविध संस्कृतियों को बढ़ावा
– अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर मिलती विश्वविद्यालय को पहचान – राजस्थानी भाषा को संवैधानिक मान्यता मिलने में आसानी