विश्वविद्यालय में १० वर्ष पूर्व सात विषयों में एमफिल पाठ्यक्रम की शुरुआत की गई थी। इनमें एम.फिल एन्वायरमेंट मैनेजमेंट, फूड एन्ड न्यूट्रिशियन, राजनीति विज्ञान, अर्थशास्त्र, एकाउन्टेंसी एन्ड फाइनेंशियल मैनेजमेंट, बिजनेस स्टेटिक्ट्सि और बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन विषय शामिल हैं। प्रत्येक विषय में १५-१५ सीट का प्रावधान है। विश्वविद्यालय ने पीएचडी प्रवेश परीक्षा की तरह एमफिल में दाखिलों के लिए भी प्रवेश योग्यता परीक्षा (एईटी) तय की। इसमें सौ-सौ नम्बर के दो पेपर रखे गए। पेपर प्रथम रिसर्च एप्टीट्यूड और पेपर द्वितीय संबंधित विषय का रखा गया। बीते चार साल में यह परीक्षा सिर्फ एक बार हुई है। इसके बाद से ना परीक्षा ना पाठ्यक्रमों दाखिले हुए हैं।
सफाई से झौंक रहे धूल…. एमफिल पाठ्यक्रमों में नियमित प्रवेश और परीक्षा नहीं होने के बावजूद विश्वविद्यालय प्रतिवर्ष प्रोस्पेक्ट्स में इसकी सीट और जानकारी दे रहा है। सत्र २०१८-१९ के प्रोस्पेक्ट्स में भी इनका जिक्र किया गया है। इस बार भी प्रोस्पेक्टस में एमफिल कोर्स की जानकारी दी जाएगी। ऐसा तब है जबकि विद्यार्थियों का भी एमफिल में कोई रुझान नहीं रहा है।
कुलपति और बॉम ही अधिकृत
पत्रिका ने विश्वविद्यालय के डीन और अधिकारियों एमफिल पाठ्यक्रमों के बारे में संपर्क किया। ज्यादातर ने कहा कि कुलपति ही नए कोर्स प्रारंभ अथवा निरर्थक कोर्स खत्म करने के आदेश देते हैं। एमफिल पाठ्यक्रमों को लेकर भी कुलपति और प्रबंध मंडल (बॉम) ही फैसला कर सकते हैं।एमफिल के बजाय
चलें नए कोर्स… एमफिल कोर्स के बजाय नए जॉब ओरिएन्टेड कोर्स चलाने में विश्वविद्यालय की रुचि नहीं है। विश्वविद्यालय में अंग्रेजी, संस्कृत, गणित, फिजिक्स विभाग, कई भारतीय और विदेश भाषाओं के पाठ्यक्रम नहीं हैं। रक्षा रणनीति (डिफेंस स्ट्रटेजी कोर्स) भूगोल, रिमोट सेंसिंग और अन्य विभागों के संयुक्त रीजनल इम्पॉरटेंस पाठ्यक्रम, खेलकूद से जुड़े बीपीएड-एमपीएड पाठ्यक्रम नहीं हैं। ३२ साल में कई कुलपतियों ने नए पाठ्यक्रम शुरू कराए, लेकिन उनका कार्यकाल खत्म होते ही पाठ्यक्रम बंद हो गए।