डॉ. शर्मा ने कहा कि मलेरिया के अब तक प्लासमोडियम फैल्सीपैरम, प्लासमोडियम वाइवेक्स, प्लासमोडियम ओवेल और प्लासमोडियम मलेरी परजीवी ही माने जाते रहे हैं। भारत में हमने अंडमान-निकोबार में शोध के दौरान नया परजीवी प्लासमोडियम नॉलिसाई भी चिह्नित किया है। इनमें केवल फैल्सीपैरम का ही वैक्सीन और दवाएं बन पाई हैं। जबकि वाइवेक्स का कल्चर लेना मुश्किल है।
ज्यादातर मामलों में परजीवी का तेजी से संक्रमण होता है। यह लीवर और लाल रक्त कणिकाओं पर प्रभाव डालते हैं। कायदे से इनके लिए अलग-अलग वैक्सीन होने चाहिए। अफ्रीकी देशों से ज्यादातर रोग पनपने के सवाल पर डॉ. शर्मा ने कहा कि वहां की जलवायु और लोगों का वन्य जीवों के करीब रहना इसकी मुख्य वजह है। अमरीका, मलेशिया, थाईलैंड, भारत और अन्य देशों में भी बीमारियों की प्रकृति, कारण और परिस्थिति पृथक हैं। सभी देशों में वृहद स्तर पर शोध जारी है। लेकिन परजीवियों के अनुसार नए वैक्सीन की जरूरत है।
मलेरियों के बढ़ते मामलों को देखते हुए कारगर वैक्सीन और दवाओं का निर्माण होना चाहिए। डेंगू बढऩे के सवाल पर डॉ. शर्मा ने कहा कि बहुत तेज गर्मी या सर्दी में डेंगू सक्रिय होता है। इसके लिए भी देश की विभिन्न प्रयोगशाला और
एम्स के स्तर पर शोध कार्य जारी है। इससे पूर्व डॉ. शर्मा ने जूलॉजी और माइक्रोबायलॉजी विभाग के विद्यार्थियों को कई जानकारियां दी। विभागाध्यक्ष प्रो. सुभाषदत्त ने स्वागत किया। डॉ. राजू शर्मा, डॉ. अशोक गुप्ता और अन्य मौजूद रहे।