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अजमेर

राजस्थान का रण : अपने नेता तो फिर रहे यहां डोलते, बाहरी नेताओं की यूं चमकी राजनीति में किस्मत

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अजमेरOct 09, 2018 / 08:06 pm

सोनम

outsiders succeed in political field as comparison to ajmerites

राजस्थान का रण : अपने नेता तो फिर रहे यहां डोलते, बाहरी नेताओं की यूं चमकी राजनीति में किस्मत

दिलीप शर्मा . अजमेर.अजमेर के लिए यह कहा जाता है कि एक बार जो यहां आता है, जिले का राजनीतिक इतिहास यूं तो खासा लंबा रहा है। यहां से कई कद्दावर नेता जयपुर व दिल्ली तक अपना डंका बजा चुके हैं। अजमेर ने बाहर से आए नेताओं को भी खूब प्यार दिया यह तो हुई शहर की बात। अब राजनीतिज्ञों की बात की जाए तो यहां कई नेता हुए। जिन्होंने अच्छे ओहदे पाए।
कुछेक को छोड़ अधिकांश नेता वहीं राजनीतिक क्षेत्र में आगे बढ़े जिन्होंने वर्षों तक जिले की राजनीति में अपना वर्चस्व रखा। इसके अलावा अजमेर के भी कई नेता राजनीति में काफी आगे निकले लेकिन यहां हम प्रमुख उन राजनीतिज्ञों की चर्चा कर रहे हैं। जो अन्य जिलों से यहां आकर बसे और अपनी विशिष्ट पहचान बनाई।
बाहर से आए नेता जो अजमेर के राजनीतिक क्षितिज पर छाए
ओंकार सिंह लखावत – ग्राम टहला (नागौर) से करीब 60 के दशक में अजमेर आए। यहां वकालत की पढ़ाई पूरी की इस बीच कुछ समय बोर्ड ऑफिस में भी कार्य किया। बाद में फौजदारी मामलों की वकालत प्रारंभ की और कई बड़े मुकदमे जैसे तोगडिय़ा जैसे कई मामलों की पैरवी की। संघनिष्ठ लखावत राज्य सभा सांसद, धरोहर संरक्षण एवं प्रोन्नति प्राधिकरण के अध्यक्ष तथा न्यास सदर के अतिरिक्त संगठन के महत्वपूर्ण पदों पर रहे। अजमेर में अटल बिहारी वाजपेयी की यात्रा हो या हालिया पीएम नरेन्द्र मोदी की कायड़ आमसभा में भी मुख्य संयोजन लखावत के हाथ में ही रहा। वर्तमान में वह प्रोन्नोति प्राधिकरण के अध्यक्ष के रूप में सीएम वसुंधरा राजे के निर्देशों पर प्रदेश की ऐतिहासिक धरोहरों के पैनोरमा निर्माण के कार्य का दायित्व निभा रहे हैं।
सुशील कंवर पलाड़ा – नागौर जिले के पलाड़ा ग्राम से अजमेर आए भंवर सिंह पलाड़ा खान व रॉयल्टी व बजरी ठेकों से जुड़े रहने के कारण जिले व आसपास के गांवों में अच्छा प्रभाव रहा। अब होटल व्यवसाय से भी जुड़े हैं। इनकी पत्नी सुशील कंवर पलाड़ा 2010 जिला प्रमुख बनीं। इसके बाद वर्ष 2013 में इन्हें मसूदा से भाजपा से विधायक का टिकट दिया। वर्तमान में वह मसूदा से विधायक हैं। पति भंवर सिंह का भी इन्हें खासा सहयोग मिला जिससे क्षेत्र में अच्छी पकड़ बनाई। भंवर सिंह का राजपूत समाज में भी प्रभाव माना जाता है।

विष्णु मोदी – नीम का थाना से आए। खान व्यवसाय से जुड़े उद्यमी। धन बल के रूप में अजमेर से कांग्रेस की सीट पर वर्ष 1984 में अजमेर के कांग्रेस सांसद बने इसके बाद 1993 में पुष्कर से विधायक व 2003 में मसूदा से भाजपा का टिकट पाने में सफल रहे और वर्ष 2003 में विधायक चुने गए। बताया जाता है कि मोदी ने चुनाव प्रचार के दौरान कार्यकर्ताओं को जमकर उपकृत किया। वाहन बांटने से लेकर कई जगह खर्च किए।
आचार्य भगवान देव – अजमेर के सांसद 1980 से 1984 तक अजमेर के सांसद बने। दिल्ली के आचार्य भगवान देव इंदिरा गांधी परिवार के योग शिक्षक थे। उन्हें पार्टी ने अजमेर से सांसद का चुनाव लड़वाया।
जगदीप धनखड़ – झुंझूनूं के रहने वाले व हाईकोर्ट के नामी वकील वकालत का व्यवसाय करने वाले धनखड़ वर्ष 1993 में किशनगढ़ से विधायक बने। इन्होंने अजमेर की सत्ता पर कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लडकऱ जीते।

वासुदेव देवनानी – उदयपुर में इंजीनिरिंग कॉलेज में व्याख्याता रहे वासुदेव देवनानी संघनिष्ठ व नागपुर स्थित मुख्यालय में खासे रसूखातों के चलते 2003 से गत तीन विधानसभा चुनाव में भाजपा के प्रत्याशी रहे और तीनों लगातार तीनों बार वह विजयी रहे। मौजूदा राज्य सरकार में वह शिक्षा राज्यमंत्री हैं। क्षेत्र में सिंधी मतदाताओं पर पकड़ रखने के साथ ही देवनानी अजमेर में उत्तर विधानसभा में लगातार तीन बार विधायक चुने गए। हालाकि देवनानी अजमेर के रहने वाले राजनीति से पहले नौकरी उदयपुर पॉलीटेक्किन कॉलेज में की।
सचिन पायलट – कांग्रेस के युवा नेताओं में राहुल गांधी के करीबी माने जाने वाले सचिन पायलट ने अपने दिवंगत पिता राजेश पायलट की विरासत को आगे बढ़ाया। सचिन पायलट दो बार सांसद व गत कांग्रेस सरकार में अजमेर से 2009 से 2014 तक सांसद रहते हुए केन्द्रीय दूरसंचार व कंपनी मामलात के राज्यमंत्री रहे। बाद में 2014 के लोकसभा चुनाव में सांवरलाल जाट ने इन्हें पराजित किया। जाट के गत वर्ष निधन के बाद अजमेर के लोकसभा उपचुनाव में सावरलाल जाट के पुत्र रामस्वरूप लांबा को हराकर कांग्रेस के रघु शर्मा अजमेर के सांसद बने। जनवरी 2018 से सांसद शर्मा अजमेर का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।

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