नसीराबाद निवासी सुशीला पत्नी राजेश छत पर कपड़े सुखाने गई तो चक्कर एवं उल्टी शुरू हो गई। उसे नसीराबाद के राजकीय चिकित्सालय ले गए जहां एक्सरे करवाने के बाद
अजमेर के जेएलएन अस्पताल रैफर कर दिया। परिजन जेएलएन अस्पताल मरीज को लेकर पहुंचे तो करीब चार घंटे तक इलाज शुरू नहीं हुआ। यहां मौजूद चिकित्सकों ने न्यूरो सर्जन डॉ. दत्ता से घर मिलकर आने के लिए परिजन को कहा।
परिजन ने आग्रह कर उन्हें अस्पताल बुलाया, जहां उन्होंने मरीज को देखते ही जयपुर रैफर करने को कह दिया। परिजन ने बताया कि अगर जयपुर रैफर करना था तो चार घंटे यहां मरीज को क्यों रोके रखा, इलाज शुरू क्यों नहीं किया। बाद में एम्बुलेंस में गंभीर घायल सुशीला को जयपुर के लिए रवाना हुए कि करीब 15-20 किमी दूर उसकी सांसें थम गई।
वे वापस जेएलएन अस्पताल पहुंचे ताकि चिकित्सक से पुष्टि करवा सकें। यहां चिकित्सकों ने मृत घोषित कर दिया मगर शव का पोस्टमार्टम कराने की बात कही। इससे गुस्साए परिजन ने कहा कि जब जेएलएन अस्पताल में इलाज नहीं किया और मौत भी जयपुर जाते समय रास्ते में हुई तो पोस्टमार्टम क्यों करवाएं। मौके पर पहुंची पुलिस ने भी पोस्टमार्टम की बात कही तो परिजन व महिलाओं ने कहा कि उन पर बेवजह दबाव बनाया जा रहा है। जबकि चिकित्सकों की लापरवाही से मरीज की जान गई है। बाद में समझाइश के बाद परिजन शांत हुए और शव को बिना पोस्टमार्टम के नसीराबाद ले गए।
कई बार हो चुके हंगामे अस्पताल में उपचार ढंग से नहीं होने, गम्भीर मामलों में रेफर सहित अन्य कारणों को लेकर डॉक्टर्स और मरीजों के रिश्तेदारों में तकरार आए दिन होते रहते हैं। कई बार जेएलएन हॉस्पिटल में हंगामे हो चुके हैं। साल 2000 और 2005 में तो युवा छात्र नेताओं की मौत पर पूरे शहर और हॉस्पिटल में जबरदस्त हंगामा हुआ था। अस्पताल में आगजनी और तोडफ़ोड़ भी हुई थी।