पत्रिका टीम लगातार दो दिन विश्वविद्यालय के महाराणा प्रताप भवन स्थित कैश काउन्टर पर गई। यहां डेबिट-क्रेडिट कार्ड या किसी एप से फीस भुगतान का विकल्प नहीं दिखा। विद्यार्थी डुप्लीकेट मार्कशीट, डिग्री, प्रोविजनल सर्टिफिकेट लेने के लिए कई विद्यार्थी काउन्टर पर कैश लेकर खड़े मिले। यही हाल यूजी और पीजी के रिजल्ट डीलिंग वाले हॉल में दिखा। विद्यार्थियों की भीड़ हॉल और कतार में लगी दिखी। अधिकारियों से पूछा तो बोले….पिछले नवंबर में तीन-चार छुट्टियां थीं…इसीलिए भीड़ बढऩा तो लाजिमी है।
नहीं है यह यह व्यवस्थाएं देश के कई संस्थान कैशलेस और ई-पेमेन्ट को बढ़ावा दे चुके हैं। पेटीएम, गूगल एप, भीम एप, डेबिट-क्रेडिट कार्ड जैसे कई विकल्प हैं। लेकिन विश्वविद्यालय को कैश पर ज्यादा भरोसा है। विद्यार्थियों और उनके रिश्तेदारों-परिजनों से कैश लेने के बाद ही रसीद काटी जाती है।
नहीं बने डिजिटल लॉकर
पीएम मोदी डिजिटल इंडिया को बढ़ावा दे रहे हैं। सीबीएसई, राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड में विद्यार्थियों के डिजिटल लॉकर बन चुके हैं। इनमें विद्यार्थियों के दसवीं-बारहहवीं के सर्टिफिकेट, मार्कशीट ई-फॉर्मेट में सुरक्षित हैं। लेकिन विश्वविद्यालय ने डिजिटल लॉकर नहीं बनाए हैं। यहां विद्यार्थियों को मार्कशीट, डिग्री, माइग्रेशन सर्टिफिकेट के लिए धक्के खाने पड़ रहे हैं।
फैक्ट फाइल विवि की स्थापना-1987
विवि से जुड़े विद्याथी-3.50 लाख दस्तावेजों की एवज में नियमित कमाई-1.50 से 2 लाख
कितने विषयों की परीक्षा-350 से 400 तक कैशलेस काउन्टर और डिजिटल वॉलेट या लॉकर तो आज पहली आवश्यकता है। कोरोनाकाल में इतनी भीड़ जुटाना गलत है। विवि में व्यवस्थाएं क्यों नहीं है, इसकी जानकारी लेकर तत्काल शुरुआत कराएंगे।
ओम थानवी, कुलपति मदस विवि