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अजमेर

क्या Professor भी होते हैं डिपार्टमेंट में, नहीं जानते ये कॉलेज..

ना नियम बनाने वाले एआईसीटीई- यूजीसी और राज्य सरकार को इसकी परवाह है।

अजमेरMay 17, 2019 / 08:45 am

raktim tiwari

engineering college ajmer

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रक्तिम तिवारी/अजमेर.

बॉयज और महिला इंजीनियरिंग सहित राज्य के अधिकांश इंजीनियरिंग कॉलेज केवल रीडर और लेक्चरर के भरोसे संचालित हैं। इनके किसी भी विभाग में प्रोफेसर नहीं है। ना नियम बनाने वाले एआईसीटीई- यूजीसी और राज्य सरकार को इसकी परवाह है। यही हाल रहा तो इन कॉलेजों में ‘प्रोफेसर ’ पद ही खत्म हो जाएगा।
राज्य में साल 1995-96 तक महज जोधपुर के एमबीएम, कोटा इंजीनियरिंग और गिने-चुने निजी इंजीनियरिंग कॉलेज थे। पिछले 20-25 साल में अजमेर में बॉयज, महिला इंजीनियरिंग सहित बीकानेर, बारां, झालावाड़, बांसवाड़ा, भरतपुर में सरकारी इंजीनियरिंग और निजी क्षेत्र के सौ से ज्यादा कॉलेज खुल गए हैं। इनमें सीटों की संख्या बढकऱ 55 हजार से ज्यादा हो चुकी है। राज्य के इक्का-दुक्का कॉलेज को छोडकऱ 90 प्रतिशत में विभागवार प्रोफेसर नहीं हैं। रीडर और लेक्चरर ही देश के लिए टेक्नोक्रेट तैयार करने में जुटे हैं।
क्यूं जरूरी है प्रोफेसर?
कॉलेज और यूनिवर्सिटी में शिक्षक सीधी भर्ती अथवा कॅरियर एडवांसमेंट स्कीम के तहत प्रोफेसर बनते हैं। शैक्षिक अनुभव, रिसर्च पेपर, पाठ्य पुस्तक लेखन और अन्य नियमों के तहत लेक्चरर से रीडर और रीडर से प्रोफेसर बनाए जाए हैँ। शैक्षिक जगत में प्रोफेसर को सर्वोच्च ओहदा माना जाता है। उसके अनुभव का संबंधित विभाग, संस्थान को लाभ होता है। खुद एसआईसीटीई और यूजीसी ने विभागवार न्यूनतम एक प्रोफेसर, दो रीडर और तीन लेक्चरर की अनिवार्यता तय की है।
नए कॉलेज में नहीं प्रोफेसर

वर्ष 1997-98 के बाद खुले अधिकांश सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेज में विभागवार प्रोफेसर नहीं है। यहां शुरुआत से लेक्चरर और रीडर ही विद्यार्थियों को पढ़ा रहे हैं। रीडर्स की कॅरियर एडवांसमेंट स्कीम में प्रोफेसर पद पर पदोन्नति अथवा कॉलेज में प्रोफेसर की सीधी भर्तियां भी नहीं हो रही हैं। निजी कॉलेज में तो हाल ज्यादा खराब हैं। अधिकांश कॉलेज में सिर्फ लेक्चरर ही कार्यरत हैं। एआईसीटीई और यूजीसी अपने बनाए नियमों को बचाने में विफल साबित हुई हैं।
कई प्राचार्य भी नहीं प्रोफेसर
नियमानुसार इंजीयिरिंग कॉलेज में बतौर प्रोफेसर दस साल कार्य करने वाले शिक्षक को ही प्राचार्य बनाने का नियम है। लेकिन राज्य सरकार और तकनीकी शिक्षा विभाग ने पिछले दस साल में चहेतों को कमान सौंपने की गरज से नियम तोड़ दिए। अब रीडर को भी प्राचार्य बनाया जाने लगा है। हाल यह है, कि कई कॉलेज में नियुक्त प्राचार्य खुद भी प्रोफेसर नहीं बने हैं। अजमेर के बॉयज इंजीनियरिंग कॉलेज में एम.रायसिंघानी, श्रीगोपाल मोदानी और रंजन माहेश्वरी ही बतौर प्रोफेसर प्राचार्य रहे हैं।
गायब ना हो जाए प्रोफेसर पद

उच्च, तकनीकी, मेडिकल अैार अन्य क्षेत्रों में प्रोफेसर की कमी हो रही है। प्रोफेसर की पदोन्नति में विलम्ब और सीधी भर्ती नहीं होने से यह स्थिति बनी है। यही हाल रहा तो भविष्य में प्रोफेसर पद पर खतरा मंडरा सकता है। मालूम हो कि राज्य के उच्च शिक्षा विभाग के अधीन स्नातक और स्नातकोत्तर कॉलेज में भी कोई शिक्षक प्रोफेसर नहीं हैं।

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