विश्व प्रसिद्ध पुष्कर मेले की पहचान पशुओं की खरीद-फरोख्त के साथ-साथ धार्मिक-सांस्कृतिक मेले की रही है। यहां पुराने मेला मैदान के निकट सर्कस, झूले लगाए जाते हैं। राजस्थानी लोक नृत्य, मटका दौड़, रस्सा-कशी, क्रिकेट और अन्य प्रतियोगिता होती है। इनमें ग्रामीण, देशी-विदेशी पर्यटक अपना दमखम दिखाते हैं। लेकिन कोरोना गाइडलाइंस के चलते यह अलबेले रंग नदारद हैं।
ऊंटों की सर्वाधिक आवक
मेला मैदान की अब तक की स्थिति पर नजर डाले तो अब तक ऊंट वंश की हालत ज्यादा रही है करीब 800 से ज्यादा ऊंट वंश पुष्कर के मेला मैदान में आ चुके हैं। फिलहाल आवक जारी है। नए मेला मैदान में जिला प्रशासन की घोषणा के साथ ही तंबू गाड़ दिए गए हैं। यही कारण है कि नहीं मेला मैदान में ऊंट पलकों को पर्याप्त ठौर नहीं मिल रही है। ऐसे में वे पुराने मेला मैदान में भी अपने डेरे जमाने लगे हैं।
पशुपालन विभाग की ओर से तय कार्यक्रम के अनुसार मेला मैदान में आने वाले पशुओं की गणना के लिए विभिन्न मार्गो पर 10 चौकियां स्थापित की जा चुकी है। पशु गणना शुरू कर दी गई है। इसी के साथ ही पशुपालक जानवरों की खरीद-फरोख्त कर सकते हैं। मेला मैदान से जाना चाहे तो पशुपालन विभाग की ओर से उन्हें तुरंत रवन्ना काटकर अनुमति दी जा रही है। प्रशासन का प्रयास है कि मेला मैदान में पशुपालकों का ठहराव कम से कम हो इसलिए यह व्यवस्था लागू की गई है।