भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने प्रो. सतीश अग्रवाल को बीती 15 अक्टूबर को एक शोधार्थी से 50 हजार रुपए रिश्वत लेते रंगे हाथ पकड़ा था। राजभवन के आदेश पर विश्वविद्यालय अग्रवाल को निलंबित कर चुका है। अग्रवाल के निर्देशन में छह शोधार्थी पीएचडी कर रहे हैं। निलंबित होने के कारण अग्रवाल शोधार्थियों को पीएचडी नहीं करा सकेंगे।
कैसे होगा नया गाइड आवंटित नियमानुसार विश्वविद्यालय को अग्रवाल के शोधार्थियों केा नए गाइड का आवंटन करना होगा। इसके लिए भी कुलपति ही अधिकृत हैं। नियमानुसार शोध विभाग मामले को कुलपति के समक्ष भेजेगा। वहां उच्च स्तरीय कमेटी बनाकर शोधार्थियों को नए गाइड का आवंटन होगा। शोध नियमों के तहत कुलपति के मंजूरी के बगैर गाइड आवंटन मुश्किल है।
खुद की पीएचडी पर ही सवाल? अग्रवाल की नियुक्ति वर्ष 1993-94 में हुई थी। उन्होंने कथित तौर पर खुद को आवेदन के वक्त पीएचडी उपाधि धारक होना बताया था। उनका विश्वविद्यालय सेवा में चयन हो गया। लेकिन तत्कालीन कुलपति प्रो. डी. एन.पुरोहित द्वारा गठित आंतरिक जांच में कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए थे। उनके बाद आए कुलपतियों के समक्ष यह मामला गया पर किसी ने उनके खिलाफ कार्रवाई करना मुनासिब नहीं समझा।
डीन पीजी का पदभार भी… निलंबित प्रो. अग्रवाल के पास डीन स्नातकोत्तर (पी.जी.) और परीक्षा केंद्राधीक्षक का पदभार भी था। यह पद स्नातकोत्तर स्तर के विषयों के पाठ्यक्रम, नए कोर्स की शुरुआत अथवा अन्य तकनीकी पहलुओं के संचालन के लिए होता है। अग्रवाल के मामले में कार्रवाई होने पर विश्वविद्यालय को नया डीन पीजी भी बनाना होगा। इसमें से विश्वविद्यालय ने डॉ. आशीष पारीक को फिलहाल केंद्राधीक्षक का पदभार सौंपा है।