यह है मामला प्रार्थी घीसी बाई ने एक दावा बंटवारा एवं घोषणा को लेकर उपखंड अधिकारी भवानमंडी के समक्ष पेश किया। घीसी बाई ने अपने दावे में कहा कि रामलाल की इकलौती पुत्री होने से उसका सम्पत्ति में आधा हिस्सा है। उपखंड अधिकारी ने 27 फरवरी 2008 को प्रार्थिया का वाद स्वीकार करते हुए डिक्री कर दिया। इस फैसले को अप्रार्थी कैलाश चंद व अन्य ने एसओ कम राजस्व अपील अधिकारी के समक्ष चुनौती दी। राजस्व अपील अधिकारी ने अपील स्वीकार करते हुए उपखंड अधिकारी का फैसला निरस्त कर दिया। इसके विरुद्ध प्रार्थी ने द्वितीय अपील प्रस्तुत की। कुछ समय बाद प्रार्थी ने अपील वापस (विड्रा) कर ली। इसके बाद प्रार्थी ने राजस्व मंडल के समक्ष नजरसानी प्रार्थना पत्र यह कहते हुए प्रस्तुत किया कि घीसी बाई रामलाल की इकलौती पुत्र है तथा विवादित सम्पत्ति में उसका आधा हिस्सा है। घीसी बाई ने अपने जीवनकाल में हक त्याग नहीं किया है और न ही ऐसा कोई दस्तावेज विपक्षी ने पेश किया है।
रिश्तेदारी की दुहाई देकर विड्रा करवाई अपील अप्रार्थी ने चालाकी से रिश्तेदारी की दुहाई देकर द्वितीय अपील को विड्रा करवा लिया, लेकिन विड्रा के बाद अप्रार्थी की नियत में खोट आने से वह शर्तों से मुकरने लगा। जिससे प्रार्थी के अधिकारों का हनन हुआ है। प्रार्थी ने यह कहा कि विड्रा किए जाने पर दिए आश्वासन एवं राजीनामे के अनुसार विवादित भूमि में हिस्सा नहीं देने पर प्रार्थी घीसीबाइ्र द्वारा नामांतरण को उपखंड अधिकारी के समक्ष चुनौती दी। उपखंड अधिकारी ने नामांतरण निरस्त कर दिया। इसके खिलाफ अप्रार्थी कैलाशचंद ने संभागीय आयुक्त के समक्ष अपील पेश की जो निरस्त हो गई। जिसके विरुद्ध राजस्व मंडल में निगरानी प्रस्तुत होने पर निगरानी स्वीकार कर नामांतरण बहाल रखा गया। इसके विरुद्ध प्रकाश चंद की ओर से उच्च न्यायालय में रिट दायर की गई। जिस पर उच्च न्यायालय ने स्थगन प्रार्थना पत्र निरस्त कर दिया। इसकी अपील उच्च न्यायालय की खंडपीठ में लम्बित है। उक्त समस्त कानूनी कार्यवाही में प्रार्थी को समय लगा जो एक सद्भाविक कारण है जो क्षमा किए जाने योग्य है। इसके विरोध में अप्रार्थी के अधिवक्ता सुनील कड़वासरा ने यह तर्क दिया कि प्रार्थी ने अपील को विड्रा किया गया है। आदेशिका पर प्रार्थी के हस्ताक्षर हैं वे अपनी स्वीकारोक्ति से मुकर नहीं सकते।