महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय प्रतिवर्ष बीएड, लॉ और स्नातक/स्नातकेात्तर कॉलेज से सम्बद्धता फीस वसूलता हैं। बाद में टीम भेजकर कॉलेज का निरीक्षण कराया जाता है। शिक्षक, संसाधन, पुस्तकालय, कम्प्यूटर, खेल मैदान और अन्य सुविधाओं की रिपोर्ट मिलने के बाद विश्वविद्यालय संबंधित कॉलेज को एक या दो साल की अस्थाई सम्बद्धता देता हैं।
इस प्रक्रिया में हर साल विलम्ब होता है। पिछले साल राजभवन ने सभी विश्वविद्यालयों को सम्बद्धता कार्य कम्प्यूटरीकृत करने के निर्देश दिए थे। फिर भी मामला अधर में है। कम्प्यूटरीकृत नहीं कामकाज विश्वविद्यालय को निजी और सरकारी कॉलेज से जुड़ी निरीक्षण रिपोर्ट, शैक्षिक स्टाफ, फीस और अन्य पत्रावलियां कम्प्यूटर पर अपलोड करनी थी। प्रत्येक कॉलेज की सूचना हायर एज्यूकेशन पोर्टल से जोड़ी जानी थी। ताकि विद्यार्थी और उनके अभिभावक, आमजन पोर्टल से कॉलेज की सम्बद्धता, फीस, संसाधनों की जानकारी ले सकें। इसके बावजूद साल भर से मामला अधर में है। तत्कालीन कुलपति प्रो. विजय श्रीमाली ने अपने तीन माह के कार्यकाल में इसके प्रयास शुरू किए थे। उनकी आकस्मिक मृत्यु के चलते कामकाज ठप पड़ा है।
दो सत्र की सम्बद्धता बकाया? विश्वविद्यालय के क्षेत्रवाधिकार से जुड़े कई कॉलेज की दो सत्र की सम्बद्धता बकाया है। इनमें करीब पचास कॉलेज की सत्र 2017-18 से और इतने ही कॉलेज की सत्र 2018-19 की सम्बद्धता पर फैसला होना है। विश्वविद्यालतय की लेटलतीफी को लेकर कॉलेज परेशान हैं।
यहां तीन साल की सम्बद्धता में अड़चनें बार कौंसिल ऑफ इंडिया ने सभी विश्वविद्यालयों को लॉ कॉलेज को तीन साल की एकमुश्त सम्बद्धता देने को कहा है। इस बारे में राज्य के विश्वविद्यालय, सरकार और राजभवन फैसला नहीं कर पा रहे। तीन साल की सम्बद्धता देने के मामले में विश्वविद्यालयों को एक्ट में संशोधन करना है। साथ ही विश्वविद्यालयों को कुलाधिपति और राज्य सरकार से भी मंजूरी लेनी है। पिछले दस महीने से यह मामला अधरझूल में है।