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एक मां ऐसी भी. . . दूसरों पर भी लुटा रही ‘मां’ का दुलार

मदर्स डे विशेष-शिशु गृह की प्रबंधक के पद है फरहाना खान, अब तक सैंकड़ों बच्चों को दिया नया जीवन

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अजमेर

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Manish Singh

May 12, 2024

एक मां ऐसी भी. .दूसरों पर भी लुटा रही ‘मां’ का दुलार

शिशु गृह के बच्चों के साथ मैनेजर फरहाना खान। पत्रिका

मनीष कुमार सिंह अजमेर. ‘मां’ बोलने-सुनने में जितना छोटा शब्द है उसकी गूंज उतनी ही बड़ी है। जहां मां की ममता का जिक्र हो वहां हर दर्द तिरोहित हो जाता है और बस सुकून की छांव ही नजर आती है। मां अपना दर्द भुलाकर किसी का भी दर्द बांट लेती है। अजमेर के शिशु गृह में भी एक ऐसी ही मां है जो खुद का एक पुत्र होने के बावजूद बीते दस साल से शिशु गृह में रहकर सैकड़ों अन्य बच्चों पर अपना प्यार-दुलार और ममता न्यौछावर कर रही है।

लोहागल में महिला एवं बाल विकास विभाग की ओर से संचालित शिशु गृह मैनेजर फरहाना खान 10 साल से सिंगल मदर होते हुए भी अपने बच्चे के साथ शिशुगृह के बच्चों पर अपना दुलार लुटा रही है। फरहाना बताती हैं कि अब तक अजमेर शिशु गृह से 60 बच्चे केन्द्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण ‘कारा’ के जरिए गोद दिए जा चुके हैं। इसमें से 6 बच्चे अन्तरराष्ट्रीय दत्तक गृहण में हैं। जो यूएसए, स्पेन और यूके गए हैं। दत्तक गृहण में जाने वाले बच्चों का शिशु गृह दो साल तक रिपोर्ट लेता है, लेकिन वह बीते दस साल से विदेश में गोद दिए गए बच्चों और उनके माता-पिता के सम्पर्क में हैं। इसी तरह 54 बच्चे अजमेर व देश के अन्य राज्यों में गोद दिए जा चुके हैं।

बनाया जाएगा आत्मनिर्भर

फरहाना खान ने बताया कि शिशु गृह केवल बच्चों की सार-संभाल तक सीमित नहीं है। उनको उन माता-पिता का रजिस्ट्रेशन, काउंसलिंग और होम स्टडी तक करनी होती है। अब तक अजमेर शिशु गृह 110 दंपती को संतान सुख दिलाने का जरिया बन चुका है। खान बताती हैं कि कुछ बच्चे ऐसे हैं जो शिशु गृह में पले-बढ़े और फिर बालिका गृह में रहकर शिक्षा-दीक्षा पूरी की। वे बच्चे अब भी उनके सम्पर्क में हैं। दो साल से एक विमंदित मां के बच्चा, 12 साल की विशिष्ट श्रेणी की बालिका का स्पॉन्सरशिप में शिशु गृह में लालन-पालन करके उन्हें भी आत्मनिर्भर बनाया जाएगा।

निकल आते हैं आंसू

फरहाना खान बताती हैं कि जब बच्चे को मां कांटों भरी झाडि़यों, नाले और खुले आसमान तले छोड़ जाती हैं तो बड़ा दु:ख होता है। उनकी हालत देखकर आंखों से आंसू छलक जाते हैं। अब अस्पताल में पालना गृह बनाए गए हैं। मां अनचाहे बच्चों को इधर-उधर ना फेंककर पालना गृह में छोड़ सकती हैं।

. . .तो छोटी लगेगी खुद की तकलीफ

फरहाना खान बताती है कि वह भी सिंगल मदर हैं। उनके दस साल का बेटा है। महिलाएं अपनी तकलीफ को बड़ा बनाकर अवसाद में आ जाती हैं लेकिन जब आप समाज और दूसरे के दर्द को अपना समझकर कुछ करते हैं तो आपकी परेशानियां खुद-ब-खुद छोटी होती चली जाएंगी और दूसरों में अपनी खुशियां मिलने लगेंगी।