हकीकत बयां करते आंकड़े वर्ष 2017-18 की बात करें तो पुरुषों के नाम जहां 88.92 सम्पत्ति खरीदी गई, वहीं महिलाओं के नाम पर केवल 11.71 प्रतिशत जमीनें ही खरीदी गई। वर्ष 2018-19 में पुरुषों के नाम 88.07 तो महिलाओं के नाम केवल 11.93 प्रतिशत जमीनें ही खरीदी गई।
वर्ष 2019-20 में पुरुषों के नाम 87.44 तो महिलाओं के नाम केवल 12.56 प्रतिशत जमीनें ही खरीदी गई। वर्ष 2020-21 में पुरुषों के नाम 84.76 तो महिलाओं के नाम केवल 15.24 प्रतिशत जमीनें ही खरीदी गई।
अप्रेल 2021 से अगस्त 2021 तक पुरुषों के नाम 82.76 तो महिलाओं के नाम केवल 17.24 प्रतिशत जमीनें ही खरीदी गई।
अप्रेल 2021 से अगस्त 2021 तक पुरुषों के नाम 82.76 तो महिलाओं के नाम केवल 17.24 प्रतिशत जमीनें ही खरीदी गई।
पैतृक सम्पत्ति के लिए भी कानूनी लड़ाई लड़कियों को लड़कों की तरह ही पैतृक सम्पत्ति में अधिकार के लिए कानून भी बन गया लेकिन उन्हें यह सम्पत्ति भी आसनी से हासिल नहीं होती। वरन तो परिवार व समाज के लोकलाज से वे सम्पत्ति में हक नहीं मांगती और जब मांगती है तो आसनी से मिलता नहीं अदालत का दरवाजा भी खटखटाना पड़ता है। अदालतों में अचानक बढ़े सम्पत्ति विवाद इसके उदाहरण हैं।
किसके पक्ष में कितनी जमीनों पंजीयन अवधि महिलाओं के पक्ष में प्राप्त आय महिलाओं को कुल दस्तावेज पुरूष के पक्ष में पंजीबद्ध दस्तावेजों राशि रु. कुल लाभ राशि पंजीबद्ध दस्तावेजों की संख्या करोड़ में रु. करोड़ में की संख्ंया
2017-2018 202389 725.02 140.69 1728017 1525628
2017-2018 202389 725.02 140.69 1728017 1525628
2018-2019 209550 830.87 161.79 1756716 1547166
2019-2020 214557 91960.48 203.29 1708720 1494163 2020-2021 253291 125784.88 194.40 1661511 1408220
2021-2021 112563 53686.87 84.15 652786 540223 इनका कहना है महिलाओं के लिए लिए केवल बराबरी की बात ही नहीं हो उन्हें बराबरी का हक भी मिलना चाहिए। हमें सामंतवादी सोच बदलनी होगी। लैंगिग भेदभाव खत्म करना होगा। महिलाओं को मिले कानूनी हक की जानकारी उन तक पहुंचनी चाहिए। जब विधवा को सम्पत्ति में अधिकार मिल सकता है तो पति के रहते पत्नी को क्यों नहीं। उच्चतम न्यायालय ने भी अपने निर्णय में बेटी को वारिस माना है।
2019-2020 214557 91960.48 203.29 1708720 1494163 2020-2021 253291 125784.88 194.40 1661511 1408220
2021-2021 112563 53686.87 84.15 652786 540223 इनका कहना है महिलाओं के लिए लिए केवल बराबरी की बात ही नहीं हो उन्हें बराबरी का हक भी मिलना चाहिए। हमें सामंतवादी सोच बदलनी होगी। लैंगिग भेदभाव खत्म करना होगा। महिलाओं को मिले कानूनी हक की जानकारी उन तक पहुंचनी चाहिए। जब विधवा को सम्पत्ति में अधिकार मिल सकता है तो पति के रहते पत्नी को क्यों नहीं। उच्चतम न्यायालय ने भी अपने निर्णय में बेटी को वारिस माना है।
प्रो.लाड कुमारी जैन,पूर्व अध्यक्ष, महिला आयोग, राजस्थान read more:ठप हुआ रजिस्ट्री का काम, लिपिक बने ‘डिप्टी रजिस्ट्रारÓ !