यह आदेश न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा तथा न्यायमूर्ति के.पी. सिंह की खण्डपीठ ने अमिताभ शर्मा की याचिका को निस्तारित करते हुए दिया है। याचिका पर वरिष्ठ अधिवक्ता सतीश त्रिवेदी व सीबीआई अधिवक्ता ज्ञान प्रकाश ने बहस की। याचिका द्वारा सीबीआई की चार्जशीट पर संज्ञान लेते हुए गैर जमानती वारण्ट आदेश की वैधता को चुनौती दी गयी थी।
कोर्ट ने कहा है कि भले ही पुलिस रिपोर्ट में आरोपी को क्लीनचिट दी गयी हो, कोर्ट को गवाहों के बयान व विवेचना में आए साक्ष्यों पर संज्ञान लेकर प्रक्रिया शुरू करने का कानूनी अधिकार है। कोर्ट ने कहा कि यह रेयर ऑफ रेयरेस्ट केस नहीं है, जिसमें कोर्ट अपनी अन्तर्निहित शक्तियों का प्रयोग कर हस्तक्षेप करे। फर्म द्वारा बैंक से लोन लेने के लिए जिन जमीनों को बंधक रखा गया, उनके अभिलेख बनावटी व फर्जी है। मामले की विवेचना सीबीआई द्वारा की गयी।
मालूम हो कि बैंक आॅफ बड़ौदा की शिकोहाबाद शाखा से फर्म ने करोड़ों का लोन मांगा और बंधक के लिए कई जमीनों को बंधक रखा गया। इस संबंध में बैंक के क्षेत्रीय कार्यालय आगरा के पैनल अधिवक्ता याची से कानूनी राय व सम्पत्तियों के सत्यापन की रिपोर्ट मांगी गयी। सब कुछ सही होने की रिपोर्ट पर लोन स्वीकृत किया गया। जो दो गारण्टर दिये गये श्रीमती राधा रानी व श्रीमती रागमूर्ति देवी पहले ही मर चुकी थी। उन्होंने अपनी सम्पत्ति भी बेच दी थी।
सात गारण्टरों को जमीन का मालिक बताते हुए लोन देने की संस्तुति कर दी गयी। तीस साल तक के रिकर्ड का खर्च नहीं किया गया। जमीन की गलत बाउण्ड्री दिखाकर जमीन बंधक रखी गयी और वकील ने सभी जमीनों की सत्यापन रिपोर्ट में पाकसाफ होने की राय दी। जिससे बैंक को करोड़ों का नुकसान उठाना पड़ा। बैंक ने ही सीबीआई जांच की मांग की थी और प्राथमिकी दर्ज करायी थी।
By Court Correspondence