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प्रयागराज

यमुना प्रदूषण को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला, एचएफएल से दो सौ मीटर तक निर्माण पर रोक

जल निगम के परियोजना प्रंबधक पर गिरी गाज

प्रयागराजDec 22, 2017 / 09:37 pm

Akhilesh Tripathi

yamuna pollution

यमुना प्रदूषण

इलाहाबाद. इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने मथुरा वृदांवन में यमुना नदी के उच्चतम बाढ़ बिन्दु से 200 मीटर तक निर्माण पर रोक लगा दी है। कोर्ट ने मुख्य सचिव अनुपालन रिपोर्ट मांगी है। साथ ही प्रमुख सचिव द्वारा जल निगम के प्रबंध निदेशक को कोर्ट को गलत जानकारी देने के लिए परियोजना प्रबंधक को निलम्बित करने की जानकारी मिलने के बाद कोर्ट ने अगली सुनवाई की तिथि 18 जनवरी को कार्रवाई रिपोर्ट मांगी है।

कोर्ट ने कहा है कि सरकारी अधिकारी जवाबी हलफनामा दाखिल करते समय सावधानी बरते और सम्पूर्ण जवाब दाखिल करे ताकि बार बार हलफनामा दाखिल करने में कोर्ट का समय बर्बाद न होने पाये। जवाबी हलफनामा पूरी जिम्मेदारी व तथ्यों के सत्यापन के बाद ही हलफनामे दाखिल हो। राज्य सरकार के वरिष्ठ अधिवक्ता शशि नन्दन ने मुख्य सचिव के गलत जानकारी वाले हलफनामे के लिए माफ करने का अनुरोध किया।

यह आदेश न्यायमूर्ति अरूण टण्डन तथा न्यायमूर्ति राजीव जोशी की खण्डपीठ ने मथुरा के मधु मंगल शुक्ल की जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए दिया है। कोर्ट ने कहा कि 10.89 करोड़ की योजना सभी घरों को सीवर लाइन से जोड़ने की मंजूर की गयी है। जब नगर के भवनों का पता ही नहीं तो योजना पर अमल किस तरह होगा। कोर्ट ने कहा कि इलाहाबाद की तरह सीवर वृन्दावन में डाला गया तो पैसे की बर्बादी होगी। अपर महाधिवक्ता एम.सी चतुर्वेदी व जल निगम के अधिवक्ता वशिष्ठ तिवारी ने कोर्ट को बताया कि लापरवाही बरतने वाले परियोजना प्रबंधक को एक हफ्ते में प्रबंध निदेशक द्वारा निलम्बित कर दिया जायेगा। इस आशय का सरकारी आदेश जारी किया जा चुका है। कोर्ट ने वृन्दावन में 11034 मकान होने के हलफनामे पर नाराजगी जाहिर की थी। मुख्य सचिव ने मथुरा वृन्दावन में घरों की इतनी ही संख्या का हलफनामा दाखिल किया था। जिसे विश्वसनीय नहीं मानते हुए दोषी अधिकारी पर कार्यवाही करने का आदेश दिया था।
सरकारी ऑफिस में यौन उत्पीड़न मामले की सुनवाई दो हफ्ते में टली

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सरकारी कार्यालय में यौन उत्पीड़न मामले को लेकर दाखिल जनहित याचिका को दो हफ्ते बाद पेश करने का आदेश दिया है। लॉ इंटर्न द्वारा दायर एक जनहित याचिका में कहा गया था कि इलाहाबाद के एसआरएन हास्पिटल, टी.बी.सप्रू अस्पताल समेत अन्य कई प्राइवेट नर्सिंग होम, पोस्ट आफिस, एलआईसी व अन्य विभागों में यौन उत्पीड़न मामलों की सुनवाई के लिए कोई कमेटी नहीं बनी है।
इस मामले पर हाईकोर्ट ने कहा कि यह कैसे कहा जा सकता है कि ऐसा नहीं है। कोर्ट ने लॉ छात्रों को इस संबंध में आरटीआई के जरिए सूचना हासिल कर बेहतर तथ्य प्रस्तुत करने को कहा है। आधे अधूरे तथ्य के साथ याचिका दाखिल करने पर कोर्ट ने इन विधि छात्रों की क्लास भी ली। यह आदेश मुख्य न्यायमूर्ति डी.बी.भोसले तथा न्यायमूर्ति एम.के.गुप्ता की खण्डपीठ ने आफरीन मोहम्मद की जनहित याचिका पर दिया है। याची का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट की विशाखा केस में दी गयी गाइडलाइन का पालन नहीं किया जा रहा है।
रिहायशी एरिया में शराब ठेका न देने का निर्देश
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने वाराणसी मुड़कटहा मंदिर के पास रिहायशी इलाके में देशी-विदेशी शराब की दुकान का वर्ष 2018-19 में उस में लाइसेंस न देने का जिलाधिकारी को निर्देश दिया है। कोर्ट ने कहा कि कालोनी के निवासियों को शराब की दूकान में बैठकर शराब पीने की अनुमति देने से परेशानी हो रही है। दूकान के लाइसेंस की अवधि 31 मार्च को समाप्त हो रहा है। यह आदेश न्यायमूर्ति अरूण टण्डन तथा न्यायमूर्ति राजीव जोशी की खण्डपीठ ने अखिल भारतीय सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय समिति की याचिका को निस्तारित करते हुए दिया है। कोर्ट ने जिलाधिकारी को निर्देश दिया है कि विवादित एरिया में शराब की दूकान का ठेका न दिया जाये।

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