मामला फर्जी दस्तावेजों के आधार पर एक मठ (अखिल भारतीय उदासीन संगत ठाकुर जी विराजमान ठाकुर द्वारा झाउलाल) की सम्पत्ति बेचने का है। शिकायतकर्ता, मठ के एक महंत सरवरकर (जेरे इंतजामकार) का दावा है कि 2002 में वह महंत परमेश्वरदास के उत्तराधिकारी घोषित किये गए थे, जिसके बाद 2016 में इलाहाबाद हईकोर्ट की बेंच ने भी उन्हें महंत परमेश्वरदास का कानूनी उत्तराधिकारी घोषित किया था। मठ की संपत्तियों की देखभाल और प्रबंधन व इसके हितों की रक्षा की जिम्मेदारी पूरी उनकी है।
आरोप है कि आरोपी आवेदक ने खुद को महंत बताकर भू माफिया की मिलीभगत से मठ की सम्पत्तियों में धोखाधड़ी की और उसे अवैध रूप से बेचा। दूसरी और आरोपी आवेदक की ओर से आरोपों को निराधार बताते हुए शिकायतकर्ता पर ही मठ की संपत्ति हड़पने और उसे झूठा फंसाए जाने का आरोप लगाया। कोर्ट ने दोनों पक्षोें को सुनने के बाद जमानत का कोई आधार न पाते हुए जमानत यचिका खारिज कर दी।