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प्रयागराज

गंगा प्रदूषण मामला: कोर्ट ने मांगी नमामि गंगे प्रोजेक्ट की प्रगति रिपोर्ट

नालों के सीधे गंगा में गिराने पर रोक, एसटीपी के शोधित पानी की गुणवत्ता परखेगी विशेषज्ञ समिति सुनवाई 3जनवरी को

प्रयागराजDec 06, 2019 / 08:28 pm

Ashish Shukla

ganga

नालों के सीधे गंगा में गिराने पर रोक, एसटीपी के शोधित पानी की गुणवत्ता परखेगी विशेषज्ञ समिति सुनवाई 3जनवरी को

प्रयागराज. लंबे अरसे के बाद गंगा प्रदूषण को लेकर बैठी इलाहाबाद हाईकोर्ट के तीन जजों की पूर्ण पीठ ने केंद्र सरकार से नमामि गंगे प्रोजेक्ट कार्य के प्रगति की जानकारी मांगी है। कोर्ट ने पूछा कि जितने भी एसटीपी स्थापित किए गए हैं, वे ठीक से कार्य कर रहे हैं या नहीं। उनकी क्या स्थिति है और गंगा में नाले का गंदा पानी सीधे कैसे जा रहा है।
उन्हें रोकने का इंतजाम क्यों नहीं किया गया है और गंगा में न्यूनतम जल प्रवाह रखने की क्या योजना है। याचिका की अगली सुनवाई 3 जनवरी को होगी। गंगा प्रदूषण मामले को लेकर कायम जनहित याचिका की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर, न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा तथा न्यायमूर्ति अशोक कुमार की पूर्णपीठ कर रही है। केंद्र सरकार के अधिवक्ता राजेश त्रिपाठी ने कहा कि नमामि गंगे प्रोजेक्ट की कार्यवाही हो रही है।
श्री त्रिपाठी ने जानकारी देने के लिए कोर्ट से समय मांगा। न्याय मित्र अरुण कुमार गुप्ता ने कोर्ट को बताया कि गंगा को प्रदूषण मुक्त रखने के लिए न्यूनतम 50 फीसदी पानी बनाए रखने की जरूरत है। हाईकोर्ट की खंडपीठ ने इस संबंध में केंद्र सरकार से कार्य योजना की जानकारी मांगी थी । किंतु केंद्र सरकार ने अभी तक कोई जानकारी नहीं दी है ।राज्य सरकार से भी गंगा में गिर रहे नालों और एसटीपी के संचालन के संबंध में जवाबी हलफनामा मांगे गए थे। उसका भी जवाब दाखिल नहीं किया गया है। गंगा में एसटीपी से शुद्ध हुए पानी में बायोकेमिकल पालीफार्म गंगा जल में मिलकर प्रदूषण फैला रहा है। ट्रीटेड पानी को गंगा में न गिराकर अन्यत्र ले जाया जाय।
प्रयागराज में 6 एसटीपी स्थापित है जो ठीक से काम नहीं कर रहे। 83 नालों में से 43 नाले सीधे गंगा में गिर रहे हैं। कानपुर में चर्म उद्योगों के स्थानांतरित करने के मामले में भी कोई कार्रवाई नहीं की गई है। और चर्म उद्योगों का गंदा पानी सीधे गंगा जी में आ रहा है। गुप्ता का कहना था कि ट्रीटमेंट के बाद भी पानी गंगा में प्रदूषण बढ़ाने का कारण है । जिस पर कोर्ट ने उनसे विशेषज्ञों की सूची मांगी। जो जांच करेंगे कि गंगा में जा रहा ट्रीटेड पानी क्या प्रदूषित है और उसे अन्य उपयोग में लाया जा सकता है। इस पर गुप्ता ने बताया कि कोर्ट ने प्रदूषित शोधित पानी को गंगा के उस पार अन्य कार्यों में लिए जाने का योजना तैयार करने को कहा था।
किंतु कोई कार्यवाही नहीं हुई है। प्रयागराज में ही ओमेक्स सिटी की तरफ से कहा गया कि सिटी लगभग बनकर तैयार है ।लेकिन बिना किसी वैज्ञानिक आधार के 28 मार्च 2011 व 22 अप्रैल 2011 को गंगा के उच्चतम बाढ बिंदु से 500 मीटर के भीतर किसी प्रकार के निर्माण पर रोक लगा दी गई है। कोर्ट ने इस मुद्दे पर अगली तिथि को विचार करने का कहा है। याचिका पर यमुना में प्रदूषण का मुद्दा भी उठाया गया । कहा गया कि हथिनी कुंड बैराज से पानी यमुना में नहीं आ रहा है ।इसके बाद यमुना मे पानी नहीं रहता। दिल्ली के शाहदरा नाले व चंबल, बेतवा नदियों का ही पानी यमुना में आ रहा है ।
यमुना को शोधित किए बगैर गंगा को साफ रखने की कल्पना बेमानी है। कोर्ट ने इस मुद्दे पर भी अगली तिथि पर विचारे करने को कहा है।राज्य सरकार के अपर मुख्य स्थाई अधिवक्ता शशांक शेखर सिंह ने कोर्ट को बताया गंगा में एटीपी से जो शोधित पानी डाला जा रहा है ,वह पूरी तरह से शुद्ध है ।और वह प्रदूषण नही फैला रहा है और सरकार की कोशिश है कि सभी नालों को एसटीपी में शोध करने के बाद ही गंगा में डाला जाए ।कोर्ट ने प्रयागराज के आस-पास शव-दाह स्थलों के संख्या की जानकारी मांगी है और पूछा है कि ऐसे शव-दाह स्थलों की निगरानी और देखरेख किसके द्वारा की जा रही है। अगली सुनवाई तीन जनवरी को होगी।

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