एकल पीठ के आदेश को चुनौती देने वाली किरन लता सिंह और अन्य की विशेष अपील पर न्यायमूर्ति पंकज मित्तल और न्यायमूर्ति डा. वाईके श्रीवास्तव की पीठ ने यह आदेश दिया। अपील पर बहस कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता अशोक खरे का कहना था कि एसआईटी की जांच में बीएड की डिग्रियां फर्जी पाया जाना अध्यापकों की बर्खास्तगी का एकमात्र आधार नहीं हो सकता है। जब तक कि एसआईटी की रिपोर्ट को लेकर अध्यापकों की आपत्तियों को न सुना जाए।
इसके साथ ही उन्होंने कहा कि एसआईटी की रिपोर्ट अभी न्यायालय से कंफर्म भी नहीं हुई है। याचीगण ने एसआईटी रिपोर्ट को चुनौती नहीं दी है। ऐसे में विश्वविद्यालय द्वारा मात्र एसआईटी की रिपोर्ट को आधार बनाकर अध्यापकों को सेवा से बर्खास्त करने का निर्णय गलत है। कोर्ट का कहना था कि यह सभी सहायक अध्यापक एक दशक से अधिक समय से काम कर रहे हैं। कोर्ट द्वारा इनकी बर्खास्तगी पर पूर्व में दो बार अंतरिम रोक इस आधार पर लगाई गई थी कि मार्कशीट में फर्जीवाड़ा अकेले छात्रों का काम नहीं हो सकता जब तक कि संबंधित अधिकारियों की मिलीभगत न हो।