याचिका पर सुनवाई के दौरान इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा कि हाई कोर्ट में विवाह करने वाले जोड़े बड़ी संख्या में संरक्षण के लिए लगातार याचिका दाखिल करते हैं। इनके विवाह के सत्यापन का कोई भी जरिया नहीं होता है। कोर्ट की ओर से इनको हिन्दू मैरिज एक्ट या स्पेशल मैरिज एक्ट में विवाह पंजीकरण कराने को आदेश दिया जाता है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2014 में एक याचिका में प्रदेश सरकार को अनिवार्य विवाह पंजीकरण नियमावली लागू करने का निर्देश दिया है। सरकार की ओर से हलफनामा दाखिल कर जल्द से जल्द नियमावली लागू करने का आश्वासन दिया था। बावजूद इसके कुछ नहीं किया गया। इसके बाद 2015 में सुप्रीम कोर्ट की ओर से भी सभी राज्यों को अपने यहां अनिवार्य विवाह पंजीकरण नियमावली लागू करने का निर्देश दिया था।
अपर महाधिवक्ता नीरज त्रिपाठी और स्थायी अधिवक्ता अजय कुमार मिश्र ने इलाहाबाद हाई कोर्ट को बताया कि विवाह पंजीकरण की नियमावली तैयार कर ली गयी है और इसमें आवश्यक संशोधन भी कर लिये गये हैं। कैबिनेट की मंजूरी के बाद यह राज्यपाल के यहां अनुमोदन के लिए भेजी गयी है। कोर्ट ने प्रदेश सरकार को 21 अगस्त से पूर्व नियमावली लागू करने का निर्देश दिया है।
बता दें कि यूपी सरकार ने कुछ ही दिनों पहले यूपी में सभी धर्मों की शादियों का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य करने का ऐलान किया है। इसमें मुस्लिमों के बहुविवाह भी शामिल हैं। इस नियम के आने के बाद कुछ उलेमा की ओर से ऐतराज किया गया। उनकी दलील रही कि हमारे यहां शादियों में निकाहनामा भी एक तरह का रजिस्ट्रेशन है ऐसे में दूसरे रजिस्ट्रेेेेशन की कोई जरूरत नहीं दिखती।