राहुल गांधी ने कहा आई डोंट लाइक यूपी आम, सीएम योगी का पलटवार कश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत का एक ‘स्वाद’ एप्लाइड साइंसेज विभाग के डॉ. अमरेश कुमार साहू ने बताया कि, घरेलू कचरे का उपयोग कर एक स्व-प्रोपेलिंग मोटर बनाने की पकिकल्पना थी जो जैव अनुकूलता, अपशिष्ट प्रबंधन में कारगर हो। साहू ने बताया कि, घरेलू अपशिष्ट आलू के छिलके से कार्बन डॉट्स को अलग कर लिया जात है और उसके बाद लौह आधारित नैनोपार्टिकल से मिलाकर माइक्रोबोट्स विकसित होता है। प्रदूषित जल उपचार में इसका उपयोग करने से पहले इन माइक्रोबॉट के स्ट्रक्चरल इंटीग्रेशन और लोकोमोशन को अनुकूलित किया जाता है।
पेटेंट फाइल हो चुका :- माइक्रोबॉट विकसित करने में करीब दो साल का वक्त लग गए। नवंबर 2020 में इसका पेटेंट फाइल हो चुका है। यह शोध अब जर्नल ऑफ इनवायरमेंटल मैनेजमेंट एल्सवियर में प्रकाशित हुआ है।
किसी बाहरी ऊर्जा की जरूरत नहीं :- डॉ. अमरेश कुमार साहू ने बताया कि, माइक्रोबॉट को स्वायत्त रूप से चलाने के लिए गैस बुलबुला का उपयोग करते हैं। माइक्रोबॉट को किसी बाहरी ऊर्जा की जरूरत नहीं है। माइक्रोबॉट रासायनिक ऊर्जा को गतिज ऊर्जा में बदल लेता है।
माइक्रोबॉट काफी सस्ता :- डॉ. अमरेश कुमार साहू ने बताया कि, दूसरी विधियों की तुलना में माइक्रोबॉट काफी सस्ता है। इन माइक्रोबॉट के चुंबकीय गुण, बोट को जलीय माध्यम से बाहर निकलने और मल्टिपल रीसाइक्लिंग प्रदान करते हैं। जिस वजह से यह डाई डिग्रेडेशन की विधि की समग्र लागत को कई गुना कम कर देता है।
साहू की शोध टीम :- एप्लाइड साइंसेज विभाग के डॉ. अमरेश कुमार साहू की टीम में शोध छात्र सौरभ शिवाल्कर, आरुषि वर्मा, कृष्णा मौर्य, लैब सदस्य डॉ. पवन कुमार गौतम शामिल हैं। साथ ही विभाग से डॉ. सिंटू कुमार सामंता और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के डॉ. एमडी पलाशुद्दीन एसके हैं।