कोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा है कि किन तथ्यों के आधार पर आयोग की भर्तियों की सीबीआई जांच करायी जा रही है और क्या आयोग के अध्यक्ष व सदस्य सरकार द्वारा जांच कराने की अधिसूचना की वैधता को चुनौती दे सकते हैं।
यह आदेश मुख्य न्यायाधीश डीबी भोसले तथा न्यायमूर्ति सुनीत कुमार की खण्डपीठ ने उ.प्र लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष व सदस्यों की तरफ से दाखिल याचिका की सुनवाई करते हुए दिया है।
याचिका पर वरिष्ठ अधिवक्ता शशि नन्दन का कहना है कि हाईकोर्ट भी संवैधानिक संस्था है, महानिबंधक के मार्फत याचिका दाखिल की जा सकती है। इसलिए आयोग को भी याचिका दाखिल करने का अधिकार है। कोर्ट ने कहा कि क्या आयोग के अध्यक्ष याचिका दाखिल कर सकते हैं। कोर्ट ने राज्य सरकार से जानना चाहा है कि आयोग के क्रिया कलापों की जांच कराने का निर्णय किन तथ्यों के आधार पर लिया गया।
अपर मुख्य स्थायी अधिवक्ता ए.के गोयल का कहना है कि आयोग के पूर्व अध्यक्ष अनिल यादव की नियुक्ति को हाईकोर्ट ने विधि विरूद्ध करार दिया। उन पर चयन में धांधली करने का आरोप है। याची अधिवक्ता का यह भी कहना था कि मुख्य सचिव ने आयोग के अध्यक्ष व सदस्यों को बुलाकर इस्तीफा मांगा।
नयी सरकार गठित होने के बाद से ही आयोग के खिलाफ जांच की मांग उठने लगी और राज्य सरकार ने संवैधानिक संस्था के खिलाफ जांच कराने की संस्तुति की है। एक संवैधानिक संस्था के क्रियाकलापों की जांच का आदेश जारी करना विधि सम्मत नहीं है। मामले की सुनवाई नौ जनवरी को होगी।