यह आदेश मुख्य न्यायाधीश डी.बी. भोसले तथा न्यायमूर्ति सुनीत कुमार की खंडपीठ ने अध्यक्ष व सदस्य के मार्फत लोक सेवा आयोग की याचिका पर दिया है। याचिका पर वरिष्ठ अधिवक्ता शशिनन्दन, सी.बी.आई. अधिवक्ता व भारत सरकार के सहायक सालिसिटर जनरल ज्ञान प्रकाश, अपर महाधिवक्ता मनीष गोयल व अपर मुख्य स्थायी अधिवक्ता ए.के. गोयल व जे.एफ. रिवेलो व अन्य पूर्व पुलिस, प्रशासनिक अधिकारियों के अधिवक्ता आलोक मिश्र ने बहस की।
मालूम हो कि राज्य सरकार ने आयोग की परीक्षाओं में धांधली की शिकायतों को देखते हुए सी बी आई जांच कराने का निर्णय लिया और केंद्र सरकार को संस्तुत्ति भेजी। केंद्र सरकार ने राज्य सरकार के अनुरोध को स्वीकार करते हुए पिछली 5 साल की परीक्षाओं की सी.बी.आई. जांच की अधिसूचना जारी की। आयोग के अध्यक्ष व सदस्यों ने इसे चुनौती दी। इनका कहना था कि आयोग के खिलाफ राष्ट्रपति की संस्तुति पर सुप्रीम कोर्ट को ही जांच करने का अधिकार है। अन्य एजेंसी को जांच का अधिकार नहीं है। सरकार को एक संवैधानिक संस्था की जांच कराने का अधिकार नहीं है। कोर्ट ने अध्यक्ष व सदस्यों को बुलाकर पूछताछ करने पर रोक लगा दी थी और कहा था कि सी.बी.आई. जाच जारी रखे।
राज्य सरकार व सी.बी. आई. की तरफ से कहा गया कि शिकायतों की प्रारंभिक जांच की जा रही है। साक्ष्य मिलने पर एफआईआर दर्ज कर सी.बी.आई. विवेचना करेगी। सरकार ने शिकायतों की गम्भीरता का परीक्षण कर ही जांच कराने का फैसला लिया है। सुप्रीम कोर्ट के जांच का अधिकार सी.बी.आई. जांच से प्रभावित नहीं होता। यदि परीक्षा में धांधली की शिकायत आती है तो सरकार को निष्पक्ष जांच कराने का अधिकार है। कोर्ट ने 7 फरवरी को फैसला सुरक्षित कर लिया था।