यदि पेंशन आदेश में पत्नी का नाम दर्ज है तो भी उसकी सत्यता के लिए सिविल वाद ही उचित फोरम है। कोर्ट ने याची को सिविल वाद की पुनः सुनवाई के लिए अर्जी दाखिल करने तथा अधीनस्थ न्यायालय को वाद की शीघ्र सुनवाई पूरी करने का आदेश दिया है।
यह आदेश न्यायमूर्ति एस.पी केशरवानी ने रामपुर की प्रकाशवती की याचिका को खारिज करते हुए दिया है। याचिका पर अधिवक्ता संजय कुमार पाण्डेय ने बहस की। मालूम हो कि राम भरोसे लाल ग्राम पंचायत राज अधिकारी पद से सेवानिवृत्त हुए। पेंशन ग्रेच्युटी के प्रपत्र पर आठ साल की सौतेली लड़की कुमारी गीता शर्मा का नाम दर्ज था। परिवार में अन्य किसी का नाम नहीं था।
याची ने स्वयं को कर्मचारी की पत्नी बताते हुए पति की मौत के बाद पारिवारिक पेंशन की मांग की। मृतक कर्मचारी ने पत्नी का नाम पेंशन प्रपत्र पर दर्ज नहीं कराया था। पेंशन कालम दो पर पत्नी का नाम दिखाया गया किन्तु इसका कोई साक्ष्य नहीं दिया गया कि कैसे नाम दर्ज हुआ।
विभाग ने 16 अप्रैल 2012 को याची को पारिवारिक पेंशन देने से इंकार कर दिया। जिसे याचिका में चुनौती दी गयी थी। याचिका में मृत्यु प्रमाण पत्र दाखिल हुआ, जिसमें मृतक के पिता का नाम टीकाराम दर्ज है। जबकि मृतक कर्मचारी के पिता का नाम रघु नन्दन प्रसाद शर्मा था। कोर्ट ने कहा कि याची मृतक कर्मचारी की वैध पत्नी है या नहीं, यह सिविल वाद से तय हो सकता है। याचिका में साक्ष्य नहीं लिए जा सकते।