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Swami Vivekanand # 128 साल पहले अलवर से दुनिया को जगाने आए थे एक महान संत

१२८ साल पहले अलवर से दुनिया को जगाने आए थे एक महान संत

अलवरJan 12, 2020 / 01:24 am

Kailash

Swami Vivekanand # 128  साल पहले अलवर से दुनिया को जगाने आए थे एक महान संत

Swami Vivekanand # 128 साल पहले अलवर से दुनिया को जगाने आए थे एक महान संत

१२८ साल पहले अलवर से दुनिया को जगाने आए थे एक महान संत
अलवर. दुनिया में युवाओं के सबसे बड़े प्रेरणास्रोत स्वामी विवेकानन्द के बतौर सन्यासी दिए गए संदेशों की सार्थकता सवा दशक बाद भी साफ दिखती है। १८९३ में विश्व धर्म सम्मेलन में स्वामीजी के भाषण ने पूरी दुनिया पर हिन्दू धर्म की छाप छोड़ी। एेसे स्वामीजी का अलवर से गहरा नाता रहा है। जिन्होंने न केवल हिन्दुस्तान में रहते हुए बल्कि शिकागो में रहते समय भी अलवर के लोगों से पत्र व्यवहार कर सबको जागरूक किया। आज भी स्वामीजी जिस जगह रुके उनके कक्ष में पूजा होती है। जिस जगह उन्होंने जनता को संबोधित किया वहां अशोका टाकीज के सामने उनका स्मारक है। इसके अलावा मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी कार्यालय परिसर में स्वामी का स्मारक बनाया गया है। जहां सैकड़ों युवा स्वामीजी से प्रेरित होकर खुद को दिशा देते हैं।
उनके लिखे पत्रों को आप भी जानिए
१८९१ में स्वामीजी ने लाला गोविन्द सहाय को पत्र में लिखा कि प्रिय गोविंद सहाय, मन की गति चाहे जैसी भी क्यों न हो, तुम नियमित रूप से जप करते रहना। हरबक्स से कहना कि पहले वाम नासिका तदनन्तर दक्षिण एवं पुन: वाम नासिका इस क्रम में प्राणायाम करते रहें। विशेष परिश्रम के साथ संस्कृत में अभ्यास करो। १८९४ में स्वामीजी ने पत्र में लिखा कि कलकत्ते के मेरे गुरु भाइयों के साथ तुम्हारा पत्र व्यवहार है या नहीं। चरित्र, आध्यात्मिकता व सांसारिक विषयों में तुम्हारी उन्नति तो भली-भांति हो रही होगी। तुमने संभवतया सुना होगा कि किस प्रकार से एक वर्ष से भी अधिक समय से अमरीका में हिन्दू धर्म का प्रचार कर रहा हूं। मैं यहां कुशल हूं। जितना शीघ्र हो सके तुम मुझे पत्र भेजना। ३० अप्रेल १८९४ में अमरीका से लिखा कि साधुता ही श्रेष्ठ नीति है तथा धार्मिक व्यक्ति की विजय अवश्य होगी। वत्स, सदा इस बात को याद रखना कि मैं कितना भी व्यस्त, कितनी भी दूरी पर अथवा कितने भी उच्च वर्ग के लोगों के साथ क्यों न रहूं। फिर भी मैं अपने बंधु वर्ग के प्रत्येक व्यक्ति के लिए चाहे उनमें से अत्यधिक साधारण स्थिति का ही क्यों न हो, उनके लिए भी सदा प्रार्थना कर रहा हूं। उनको मैं भूला नहीं हूं। उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य की प्राप्ति न हो जाए। जिस समय जिस काम के लिए प्रतिज्ञा करो, ठीक उसी समय उसे करना ही चाहिए, नहीं तो लोगों का आप पर से विश्वास उठ जाता है। जब तक आप खुद पर विश्वास नहीं करते तब तक आप भगवान पर विश्वास नहीं कर सकते।
संत की यादों को समेटे हुए हैं स्मारक
स्वामी विवेकानंद का अलवर से गहरा नाता रहा है। उनकी यादों को अब तक अलवरवासियों ने सहेजकर रखा हुआ है। स्वामीजी की जहां भी चर्चा होती है, उसके केन्द्र में अलवर जरूर सुनाई पड़ जाता है। यही कारण है कि देश विदेश से अलवर जिले में आने वाले पर्यटक उस स्थान को देखने जरूर जाते हैं, जहां स्वामीजी का प्रवास रहा। अलवर के सीएमएचओ कार्यालय में जहां एक बंगाली डॉक्टर का निवास रहा, वहां उनका प्रवास रहा। इस स्थान पर यूआईटी की ओर से ९ सितंबर २०१८ को विवेकानंद स्मारक का निर्माण कराया गया। स्मारक निर्माण पर करीब ४२ लाख रुपए खर्च किए गए। यहां पर स्वामीजी की ध्यान मुद्रा में एक विशाल प्रतिमा स्थापित की गई है, जो कि दुलर्भ है। ध्यानमुद्रा की यह प्रतिमा ९ लाख की लागत से कांसे से बनी है। यह प्रतिमा गुरुक्राम से बनवाई गई। इसकी देखभाल भारत विकास परिषद की ओर से की जा रही है। अलवर में एक माह रहने के बाद स्वामीजी यहां से खेतडी पहुंचे। खेतडी के पूर्व महाराजा अजीत सिंह उनसे प्रभावित हुए और उन्होंने ही स्वामीजी का शिकागो की धर्म सभा में जाने का प्रबंध किया। स्वामी विवेकानंद यहां से शिकागो पहुंचे और ११ सितंबर १८९३ को उनकी ओर से दिए गए प्रवचन विश्व में अमिट छाप छोड़ गए।
जाने के बाद पत्र लिखे स्वामीजी ने
अलवर से जाने के बाद गोविन्द सहाय से कई बार पत्र व्यवहार भी किया है। उनके लिखे पत्र आज भी इस परिवार के पास सुरक्षित हैं। उनके पत्रों में लिखी बातों ने अलवर सहित देश की जनता को हमेशा ऊर्जावान बने रहने के लिए प्रेरित किया है।

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