स्वामी विवेकानंद का अलवर से गहरा नाता रहा है। उनकी यादों को अब तक अलवरवासियों ने सहेजकर रखा हुआ है। स्वामीजी की जहां भी चर्चा होती है, उसके केन्द्र में अलवर जरूर सुनाई पड़ जाता है। यही कारण है कि देश विदेश से अलवर जिले में आने वाले पर्यटक उस स्थान को देखने जरूर जाते हैं, जहां स्वामीजी का प्रवास रहा। अलवर के सीएमएचओ कार्यालय में जहां एक बंगाली डॉक्टर का निवास रहा, वहां उनका प्रवास रहा। इस स्थान पर यूआईटी की ओर से ९ सितंबर २०१८ को विवेकानंद स्मारक का निर्माण कराया गया। स्मारक निर्माण पर करीब ४२ लाख रुपए खर्च किए गए। यहां पर स्वामीजी की ध्यान मुद्रा में एक विशाल प्रतिमा स्थापित की गई है, जो कि दुलर्भ है। ध्यानमुद्रा की यह प्रतिमा ९ लाख की लागत से कांसे से बनी है। यह प्रतिमा गुरुक्राम से बनवाई गई। इसकी देखभाल भारत विकास परिषद की ओर से की जा रही है। अलवर में एक माह रहने के बाद स्वामीजी यहां से खेतडी पहुंचे। खेतडी के पूर्व महाराजा अजीत सिंह उनसे प्रभावित हुए और उन्होंने ही स्वामीजी का शिकागो की धर्म सभा में जाने का प्रबंध किया। स्वामी विवेकानंद यहां से शिकागो पहुंचे और ११ सितंबर १८९३ को उनकी ओर से दिए गए प्रवचन विश्व में अमिट छाप छोड़ गए।
जाने के बाद पत्र लिखे स्वामीजी ने
अलवर से जाने के बाद गोविन्द सहाय से कई बार पत्र व्यवहार भी किया है। उनके लिखे पत्र आज भी इस परिवार के पास सुरक्षित हैं। उनके पत्रों में लिखी बातों ने अलवर सहित देश की जनता को हमेशा ऊर्जावान बने रहने के लिए प्रेरित किया है।