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#राजस्थान का रण : अलवर के ये बूथ हैं भाजपा व कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती, यहीं से होता है हार-जीत का फैसला

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अलवरSep 04, 2018 / 12:46 pm

Hiren Joshi

Alwar Highest Polling Booth of Rajasthan Assembly Election

राजस्थान का रण : अलवर के ये बूथ हैं भाजपा व कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती, यहीं से होता है हार-जीत का फैसला

जिले में गत विधानसभा चुनाव में बूथों पर मिली बढ़त को बरकरार रखने और कमजोर बूथों की स्थिति में सुधार के लिए कांग्रेस व भाजपा में कशमकश तो है, लेकिन पार्टी एवं प्रत्याशियों की जमीनी सक्रियता ज्यादा दिखाई नहीं दे पाई है।
भाजपा के लिए बूथों पर अपनी पकड़ बनाए रखना आसान नहीं है। कारण है पांच साल में विधानसभा क्षेत्रों में राजनीतिक परिस्थितियों में बड़ा अंतर आया है। कांग्रेस के लिए वर्ष 2008 व 2013 के विधानसभा चुनाव के आंकड़ों में सुधार कर पाना बड़ी चुनौती है। वर्ष 2008 में अलवर जिले की 11 विधानसभा सीटों में 7 भाजपा की झोली में गई थी। वर्ष 2013 के चुनाव में सीटों की संख्या बढकऱ 9 तक पहुंच गई थी। यही कारण है कि वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस व भाजपा कशमकश में हैं।
बदली बूथों की स्थिति

वर्ष 2013 में विधानसभा क्षेत्र के जिन बूथों पर भाजपा को सर्वाधिक बढ़त मिली थी वहां पांच साल बाद स्थितियों में काफी बदलाव आया है। कांग्रेस को जिन बूथों पर सर्वाधिक वोट मिले थे, वहां पार्टी के लिए बढ़त को बरकरार रखना चुनौती है। वर्ष 2008 के विधानसभा चुनाव की तुलना में भाजपा ने 2013 के चुनाव में बूथों पर वोटों की स्थिति को या तो बरकरार रखा या फिर इसमें कुछ इजाफा किया। कांगे्रस ने वर्ष 2008 की तुलना 2013 के विधानसभा चुनावों में बूथों पर अपनी स्थिति मजबूत की, लेकिन वह भाजपा से पीछे रही।
कहां कैसे बदली बूथों पर स्थिति

वर्ष 2008 की तुलना में 2013 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को सबसे ज्यादा लाभ तिजारा विधानसभा क्षेत्र में हुआ। वर्ष 2008 में यह सीट भाजपा ने समझौते में जदयू के चंद्रशेखर के लिए छोड़ी थी। हालांकि भाजपा के सहयोगी दल की इस चुनाव में हार हुई। वर्ष 2013 में यहां भाजपा ने अपना प्रत्याशी उतारा और जीत दर्ज कराई। राजगढ़-लक्ष्मणगढ़ में वर्ष 2008 व 2013 के चुनाव की स्थिति में बड़ा बदलाव नहीं आया। दोनों ही चुनावों में कांग्रेस व भाजपा की हार हुई। 2008 व 2013 की तुलनात्मक स्थिति बानसूर में कांग्रेस को फायदेमंद रही। बहरोड़, किशनगढ़बास, कठूमर विधानसभा क्षेत्रों में बूथों पर दलगत वोटों की स्थिति में ज्यादा अंतर नहीं आया।
अलवर ग्रामीण विधानसभा क्षेत्र में वर्ष 2008 व 2013 में कांगे्रस की बूथों पर स्थिति में कुछ कमी आई। वहीं अलवर शहर विधानसभा क्षेत्र में भाजपा की स्थिति में सुधार हुआ।
प्रत्याशी व पार्टी की सक्रियता भी रही दायरे में

बीते पांच साल में बूथों पर दलगत स्थिति में बदलाव आने के बाद भी प्रत्याशियों व राजनीतिक दलों की सक्रियता एक दायरे तक सीमित रही। गत चुनाव में जीते प्रत्याशी साल भर जनसुनवाई एवं जयपुर-अलवर दौरों में व्यस्त रहे। कुछ विधायक जरूर अपने विधानसभा क्षेत्रों में सक्रिय रहे। वहीं ज्यादातर पराजित प्रत्याशी बीते पांच सालों के दौरान क्षेत्रों में कम ही नजर आए। ऐसे प्रत्याशी दिखे भी तो लोकसभा उपचुनाव के दौरान या फिर इसके बाद। राजनीतिक दलों की सक्रियता भी पार्टीगत कार्यक्रमों तक सिमटी रही। पार्टी के सम्मेलन, बैठक एवं अन्य कार्यक्रमों में तो पार्टी पदाधिकारियों की मौजूदगी दिखी, लेकिन जनसमस्याओं को लेकर ज्यादातर पदाधिकारी लोगों के बीच कम ही नजर आए।

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