नगर परिषद के पास शहर का अधिकतर भाग आ गया है ,लेकिन यहां तो नगर नियोजन की कोई तैयारी नहीं है। यहां सहायक अभियंता के पास ही अधीक्षण अभियंता तक का चार्ज है। यहां उप नगर नियोजक की एक पोस्ट है लेकिन यहां कई दशकों से उस पोस्ट पर किसी को लगाया तक नहीं है। ऐसे में भवन बॉयलाज की पूर्ति करवानी हो तो यह काम अभियंताओं के जिम्मे हैं जिन्हें इसकी प्रभावी जानकारी तक नहीं होती है।
बिना नियोजन के शहर को बना दिया बदसूरत- बिना नगर नियोजन यह हाल है कि वातानुकूलित सुलभ काम्प्लेक्स काली मोरी रेलवे फाटक के आगे सार्वजनिक निर्माण विभाग के जमीन पर बनाया जा रहा था, जिसका काम मध्य में ही रोकना पड़ा। एक ऐसा ही लाखों की लागत का सुलभ शौचालय घोड़ा फेर के चौराहे पर बना दिया गया जिसका आउटलेट तक नहीं है, यह वर्षों से काम ही नहीं आ रहा है। शहर में जहां मर्जी आए कूड़े दान बना दिए जाते हैं तो अवैध कॉलोनियों में राजकोष से सडक़ें बना दी गई। यूआईटी के क्षेत्र में कटी घाटी के क्षेत्र में अवैध प्लाटिंग की जा रही है।
नई कॉलोनियों में प्लाटों की संख्या इतनी कम है कि आम आदमी को लेना कठिन है। यानि वर्षों से बड़ी आवासीय योजना ही नहीं आई। शहर का विकास सुनियोजित तरीके से नहीं हो रहा है। अलवर शहर में रातों-रात अवैध निर्माण हो रहे हैं। कई बड़े काम्प्लेक्स तब बिना अनुमति के बना दिए गए हैं। भवन बनाते समय पार्र्किंग कितनी होगी या साइड में कितनी जगह छोडऩी होगी, यह नगर परिषद में बताने वाला कोई नहीं है।